Monday, 27 May 2019

सामाजिक नियंत्रण



सामाजिक नियंत्रण


हम मानव एक सामाजिक प्राणी है, हम कभी भी अकेले जीवित नहीं रह सकते। क्योकि हामारे एक दूसरे के कार्य प्रणाली हामारे एक दूसरे के जीवन में प्रभाव विस्तार करते है और ये प्रभाव विस्तार हम सब के लिए बेहद जरूरी भी है। 

इसीलिए हमें किसी ना किसी तरीके से तो समाज के अन्य व्यक्तिओ के ऊपर निर्भर करना ही पड़ता है, चाहे वो कम परिमाण में हो या फिर ज्यादा। 

{दोस्तों अगर पौराणिक समय में किसी व्यक्ति का अकेले रह पाना संभव होता भी था लेकिन वर्तमान के आधुनिक समय में वो लगभग असंभव सा है}

मानव समाज के इस विशेषता कारण ही सामाजिक नियंत्रण का महत्व ज्यादा हो जाता है।

क्योकि समाज में अगर सबको एक साथ सकुशल रहना है तो वो किसी न किसी विशेष विशेष निर्धारित नीति-नियम के माध्यम से ही संभव है। 

अगर वो नियम या सामाजिक नियंत्रण ही नहीं बचेगा तो पूरा मानव समाज ही पतन की तरफ अग्रचर हो जायेगा।

अगर हम इसको कम शब्द के अंदर सरल भाषा में व्याख्या करे तो बोल सकते है की - "सामाजिक नियंत्रण वो एक उपाय है, जिसके माध्यम से समाज ही बिभिन्न प्रकार के निति-नियम प्रस्तुत करते है और उन निति-नियमो को समाज के व्यक्तिओ की आचरणो को नियंत्रण हेतु व्यबहार करते है"

वर्तमान समय के उन नियंत्रण माध्यमों के उदाहरण : - पुलिस प्रशाशन, कानून व्यबस्था, जनरीति, लोकाचार इत्यादि।
सामाजिक नियंत्रण, विशेषता , प्रकार

अब आइए जानते है कुछ कुछ महान समाजशास्त्रीक इसके बारे में क्या कहते है : -

1. सबसे पहले मेक आईवर और पेज के अनुसार "सामाजिक नियंत्रण एक ऐसा पद्धिति है, जो सामाजिक संगति और परिवर्तनशीलता को अटूट रखकर समाज को सदा कर्मशील करके रखता है".

2. दूसरी तरफ H.M ज'नशोन कहते है की - "पथभ्रस्टकेंड्रिक कार्य या आचरणों को जिस प्रक्रिया के माध्यम से बाधा प्रदान किआ जाता है, उसी को सामाजिक नियंत्रण कहा जाता है".

अब शायद आप इस संकल्पना को अच्छे से समझ सुके होंगे। दोस्तों अब आईए जानते है इसकी कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओ के बारे में।

Thursday, 16 May 2019

कामाख्या मंदिर की अद्भुद कहानी


कामाख्या मंदिर की अद्भुद कहानी


दोस्तों हम सभी तो कामाख्या मंदिर के साथ पहले से ही परिचित है। लेकिन क्या हम सब इस मंदिर से जुड़े हुए उस अद्भुद कहानी को जानते है जिसके कारण पुरे भारतवर्ष तथा विश्व में इसको अनन्य माना जाता है ?

अगर आप भी इससे जुड़े हुए उस कहानी को पहले से नहीं जानते तो हमें यकीन की आपको ये लेख बहुत ही पचंद आएगा। 

तो चलिए आज हम कामाख्या मंदिर से जुड़े हुए उस अद्भुद कहानी को ही जानने का प्रयास करते है। 
कामाख्या मंदिर की अद्भुद कहानी

कहानी का प्रथम भाग

इस कहानी प्रारम्भ होता है असुर राज दक्ष बेटी सटी की प्रेम कथा से। इस प्रेम कथा के एक तरफ था भगवान शिव और दूसरी तरफ थी देवी सटी; लेकिन इन दोनों किनारो के बिच एक दीवार भी खड़ा था जो था सटी देवी के पिता यानि दक्ष महाराज।

सटी देवी भगवान शिव से प्रेम करती थी तथा मन ही मन उनको अपना पति भी मान सुकि थी लेकिन इस बात को अपने पिता के समक्ष बोलने से घबराती थी क्योकि दक्षराज भगवान शिव को देवताओ में सबसे निम्न दर्जे का मानते थे और इसी कारण उनसे घृणा करते थे। 

सटी जानती थी की दक्ष कभी भी शिव से उसको विवाह की अनुमति प्रदान नहीं करेगा। हालाकि अभी तक दक्ष को इस प्रेम कथा के बारे में पता नहीं चला था।

लेकिन इसी बिच एक दिन दक्षराज को अपने गुप्त अनुसरो से इस बात का पता चला जिससे वे काफी क्रोधित हुए और साथ ही अपनी बेटी को ये चितावनि भी दे डाली की अगर उसने शिव के साथ अपने सम्बन्ध का त्याग नहीं किआ तो भविश्व वो उसके साथ अपने सारे सम्बन्धो को हमेशा हमेशा के लिए ख़तम कर देगा। 

लेकिन दक्षराज के इतने चेतावनिओ के बाद भी सटी ने शिव का त्याग नहीं किआ और एक दिन गन्धर्व रीती के अनुसार उन दोनों ने विवाह रचाया।

अब आते है कहानी के दूसरे भाग पर -

Saturday, 11 May 2019

भक्ति काल के कवि

भक्ति काल के कवि (Bhakti Kaal ke kavi)


दोस्तों इस लेख में हम भक्ति काल के 5 मुख्य कविओ के साथ परिचित होंगे, जिन्होंने हिन्दू धर्म के अंदर रहकर ही इस महान धर्म संस्कार आंदोलन को एक नया मोड़ प्रदान किआ।

तो चलिए ये पांच महान कवि कौन कौन थे, एक एक करके जानने की कोसिस करते है।

1. श्रीमंत शंकरदेव : - हाँ ये हमे ज्ञात है की शायद भारत के सभी हिस्सों के सामान्य लोग इस महान पुरुष के साथ पहले से ही परिचित नहीं होंगे लेकिन दोस्तों आपकी जानकारी के लिए बता देना चाहता हु की श्रीमंत शंकरदेव भक्ति काल के एक महान कवि तथा नेता थे। 

जिन्होंने असम तथा पुरे उत्तर-पूर्वी भारत में हिन्दू धर्म को एक नया मोड़ प्रदान किआ। 

इस महान नेता का जनम हुआ था सं 1449 में भारतवर्ष के असम राज्य में स्थित नगाओं ज़िले के आलीपुखूरी नामक जगह में।

श्रीमंत शंकरदेव उनके दुवारा रचित बोरगीतो और भाओनाओ के वजह से आज भी पुरे भारतवर्ष के बौद्धिक जगत में वे जाने जाते है। 

हालाकि असम राज्य के समाम्न्य लोगो के बिच भी ये कवि अत्यंत ही विख्यात है और उनके नाम पर एक विशेष दिन पालन भी किआ जाता है, जिसको 'शंकरदेव तिथि' के नाम से जाना जाता है। 

इन्होने असम के लिए अपना जो जो भी योगदान दिआ था, उन सबके लिए इनको आज भी असम के लोग महापुरुष शब्द से बिभूषित करते है। इस महान कवि दुवारा रचित सबसे पहला बोरगीत था 'मन मेरी राम चरणेहि लागु'.

दोस्तों क्या अपने कभी माधवदेव के बारे में सुना है ?

माधवदेव इन्ही के शिष्य थे। माधवदेव को भी असम में महापुरुष नाम से जाना जाता है तथा उनके नाम पर भी हर साल में एक दिन 'माधवदेव की तिथि' पालन की जाती है।
भक्ति काल के कवि, bhakti Kaal ke Kavi

2. चैतन्य महाप्रभु : - भक्ति काल के इस महान कवि का जनम हुआ था पश्चिम बंगाल में सं 1486 के 18 फेब्रुअरी को। चैत्यन्य महाप्रभु को तो कुछ कुछ लोग भगवान का दर्जा भी देते है।

इन्होने भजन गायिकी को एक नया रूप प्रदान करके पौराणिक हिन्दू धर्म में स्थित बिभिन्न प्रकार के अंधविस्वास और कु-संस्कारो के विरुद्ध अपना आवाज़ उठाया।

भारतवर्ष में उस समय चल रहे राजनैतिक अस्थिरता को दूर करने के लिए उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बिच सद्भावपूर्ण भावना के विकाश के लिए भी कोसिस किआ। 

दोस्तों क्या आप जानते है की किसके बदौलत आज बृंदाबन पुरे भारतवर्ष तथा दुनिआभर में विख्यात है?

ये चैतन्य महाप्रभु ही है जिसने बृंदाबन के ख़तम होने वाले अस्तित्व को पुनः उद्धार किआ और अपने जीवन के आखरी भाग भी एहि पर व्यतीत किआ।