सामाजिक परिवर्तन के प्रकार
1. प्रगतिशील और पतनशील :
- सामाजिक परिवर्तन के प्रकारो में सबसे प्रथम जो दो का नाम सामने आता है, उनमे प्रथम है प्रगतिशील और दूसरा है पतनशील सामाजिक परिवर्तन।
इन दो प्रकारो में सबसे पहला प्रकार समाज को उन्नति की ओर ले जाते है।
उदाहरण : - महिलाओ की सामाजिक स्थान में प्रगति, यौक्तिक आधुनिक शिक्षा का विस्तार, समाज से अंधबिस्वास का पतन तथा युक्ति की प्रतिष्ठा इत्यादि।
प्रगतिशील परिवर्तन को सामाजिक रूपांतर भी कहाँ जाता है।
लेकिन वही दूसरी ओर पतनशील परिवर्तन समाज को प्रगति के वजाइ पतन की ओर ही ले जाते है।
उदाहरण : - पश्चिमीकरण के माध्यम से भारतीय समाज में विकशित ड्रग्स अडिक्शन, यौन अपराध, माता-पिता के प्रति बच्चो सम्मान कम होना इत्यादि इत्यादि।
2. विवर्तन और मानव स्रिस्टीकृत :
- दोस्तों ये तो हम सभी जानते है की सामाजिक परिवर्तन , मानव समाज का धर्म होता है। इसमें इंसानो की इच्छा हो या ना हो, कोई फर्क नहीं पड़ता; लेकिन परिवर्तन कम या ज्यादा तो होता ही है।
जो सामाजिक परिवर्तन समय अनुसार अपने आप होते है या जिसमे इंसानो को सक्रिय भूमिका का पालन नहीं करना पडता उसी परिवर्तन को विवर्तन कहाँ जाता है।
उदाहरण के रूप में समाज परिवर्तन के तीन मुख्य स्तर - दैविक स्तर, अतिभौतिक स्तर और प्रत्यक्षवादी स्तर। इन स्तरों के जरिए इंसानो की सोच धीरे धीरे विवर्तित होकर ही आज के इस अवस्था में पंहुचा है।
लेकिन दोस्तों मानव स्रिस्टीकृत सामाजिक परिवर्तन में मानव को पूर्ण रूप से ज्ञात होता है की समाज परिवर्तित हो रहा है क्योकि ये परिवर्तन वे खुद करते है।
उदाहरण : - राजनीती में राजतन्त्र का पतन करवाके गणतांत्रिक व्यबस्था की प्रतिष्ठा करना, महिलाओ को निरक्षरता से मुक्त करवाके शाक्षर करवाना।
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3. चक्रीय और रैखिक सामाजिक परिवर्तन :
- आज से 20
साल पहले कोई समाज व्यबस्था भारतवर्ष में चल रहा था लेकिन कुछ ही साल चलने बाद वो व्यबस्था लगभग गायव हो गया और आज के समय में तो उसका कोई नाम और निशान ही नहीं है ।
लेकिन दोस्तों अगर वही पुराण व्यबस्था पुनः 5 साल बाद भारत में लौट आता है तो कैसा होगा ?
दोस्तों परिवर्तन के इसी प्रकार को चक्रीय सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है; जिसमे एक समय चल रहा कोई पद्धिति अन्य एक समय गायव होकर पुनः लौट आता है।
उदाहरण : - लोगो के पहनावे के मामले में ये व्यबस्था ज्यादा कार्यकारी होते है।
दोस्तों चक्रीय परिवर्तन के बिपरीत भी कुछ प्रक्रियाए होती है, उनमे अन्यतम है रैखिक। ये दराचल सीधा-सीधी चलते रहते है।
उदाहरण के रूप में: - मानव समाज परिवर्तन के वही तीन मुख्य स्तर (दैविक, अतिभौतिक और प्रत्यक्षवादी स्तर)।