कामाख्या मंदिर की अद्भुद कहानी
दोस्तों हम सभी तो कामाख्या मंदिर के साथ पहले से ही परिचित है। लेकिन क्या हम सब इस मंदिर से जुड़े हुए उस अद्भुद कहानी को जानते है जिसके कारण पुरे भारतवर्ष तथा विश्व में इसको अनन्य माना जाता है ?
अगर आप भी इससे जुड़े हुए उस कहानी को पहले से नहीं जानते तो हमें यकीन की आपको ये लेख बहुत ही पचंद आएगा।
तो चलिए आज हम कामाख्या मंदिर से जुड़े हुए उस अद्भुद कहानी को ही जानने का प्रयास करते है।
तो चलिए आज हम कामाख्या मंदिर से जुड़े हुए उस अद्भुद कहानी को ही जानने का प्रयास करते है।
कहानी का प्रथम भाग
इस कहानी प्रारम्भ होता है असुर राज दक्ष बेटी सटी की प्रेम कथा से। इस प्रेम कथा के एक तरफ था भगवान शिव और दूसरी तरफ थी देवी सटी; लेकिन इन दोनों किनारो के बिच एक दीवार भी खड़ा था जो था सटी देवी के पिता यानि दक्ष महाराज।
सटी देवी भगवान शिव से प्रेम करती थी तथा मन ही मन उनको अपना पति भी मान सुकि थी लेकिन इस बात को अपने पिता के समक्ष बोलने से घबराती थी क्योकि दक्षराज भगवान शिव को देवताओ में सबसे निम्न दर्जे का मानते थे और इसी कारण उनसे घृणा करते थे।
सटी जानती थी की दक्ष कभी भी शिव से उसको विवाह की अनुमति प्रदान नहीं करेगा। हालाकि अभी तक दक्ष को इस प्रेम कथा के बारे में पता नहीं चला था।
लेकिन इसी बिच एक दिन दक्षराज को अपने गुप्त अनुसरो से इस बात का पता चला जिससे वे काफी क्रोधित हुए और साथ ही अपनी बेटी को ये चितावनि भी दे डाली की अगर उसने शिव के साथ अपने सम्बन्ध का त्याग नहीं किआ तो भविश्व वो उसके साथ अपने सारे सम्बन्धो को हमेशा हमेशा के लिए ख़तम कर देगा।
लेकिन दक्षराज के इतने चेतावनिओ के बाद भी सटी ने शिव का त्याग नहीं किआ और एक दिन गन्धर्व रीती के अनुसार उन दोनों ने विवाह रचाया।
अब आते है कहानी के दूसरे भाग पर -
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कहानी का दूसरा भाग
सटी देवी और शिव के विवाह के कुछ दिनों पश्चात एक बार दक्षराज ने अपने घर पर एक यज्ञ का आयोजन किआ, उस यज्ञ में उन्होंने अन्य देवी-देवताओ को तो निमंत्रित किआ केबल निमंत्रित नहीं किआ तो अपनी बेटी सटी और दामाद शिव को।
लेकिन अपने उच्छुकता को रोक पाने में असमर्थ होने के कारण सटी ने शिव से उस यज्ञ में जाने के लिए जिद किआ और जिसके चलते वे दोनों अनिमंत्रित होकर भी यज्ञ में पहुंच गए।
इस बार उन दोनों को एक साथ देख असुरराज काफी क्रोधित हो गए तथा भरी यज्ञ में अनिमंत्रित अतिथि शिव और सटी का अपमान करने लगे।
अपने पिता के दुवारा अपने पति और खुदके ऊपर हुए इस अपमान को सटी सह ना पायी, जिसके कारण भरी यज्ञ में सटी ने अपने देह पर अग्नि लगाकर प्राण त्याग कर दिआ।
सटी के इस देह त्याग की घटना के बाद महादेव क्रोधित हो जाते है और उनके मृत देह को अपने कंधे पर लेकर पुरे विश्व में विनाश का तांडव नृत्य करने लगते है।
महादेव के इस क्रोध को देख देवताये भी भयभीत हो जाते है तथा पुरा सृस्टि पुनः एक बार विनाश के कागार पर खड़े हो जाते है।
इसी कारण उपायहीन होकर आखिर में देवताये भगवान विष्णु से अनुरोध करते है की वो किसी भी तरह महादेव की क्रोध को शांत करे।
इसी कारण उपायहीन होकर आखिर में देवताये भगवान विष्णु से अनुरोध करते है की वो किसी भी तरह महादेव की क्रोध को शांत करे।
भगवान विष्णु भी बहुत प्रयास करते है लेकिन वे भी उनको रोकने में बहुत बार बिफल हो जाते है।
आखिर में सृस्टि को बचाने के लिए कोई उपाय ना देख विष्णु अपने सुदर्शन चक्र का व्यबहार करते है तथा सटी के मृत देह को 51 भिन्न खंडो में बिभक्त कर देते है।
आखिर में सृस्टि को बचाने के लिए कोई उपाय ना देख विष्णु अपने सुदर्शन चक्र का व्यबहार करते है तथा सटी के मृत देह को 51 भिन्न खंडो में बिभक्त कर देते है।
कहानी का तीसरा भाग
देवी के देह को 51 खंडो में बिभक्त करते समय इस 51 खंडो में से एक भाग असम राज्य के गुवाहाटी के पास में स्थित कामगिरी नामक जगह पर जा गिरते है जिसके कारण बाद में इसी जगह पर एक मंदिर का निर्माण करवाया जाता है और उसको नाम दिआ जाता है "कामाख्या मंदिर"।
दोस्तों क्या आप जानते है की सटी देवी के देह का वो अंश क्या था ? हां आप बिलकुल सही समझे, वो देवी का योनि भाग ही था।
इसी करणवर्ष कामाख्या मंदिर में योनि आकृति के पत्थर की पूजा की जाती है।
माना जाता है की हर साल के जून महीने में ये देवी अपना स्त्री धर्म (महिलाओ का मासिक धर्म) पालन करती है और इस समय पूरी पृथ्वी अपवित्र हो जाती है।
इन्ही दिनों में असम राज्य के कामाख्या मंदिर में अम्बुबासी मेला का आयोजन किआ जाता है।
इन्ही दिनों में असम राज्य के कामाख्या मंदिर में अम्बुबासी मेला का आयोजन किआ जाता है।
माना जाता है इस मेला के इन तीन दिनों में मंदिर के पास स्थित ब्रह्मपुत्र नदी की पानी लाल हो जाती है, जिसको सटी देवी की मासिक पीड़ा का प्रमाण माना जाता है।
भक्तगण माँ कामाख्या का आशीर्वाद लेने के लिए इन दिनों में मंदिर के पास भीड़ करते है और अति उल्लाश से तीन दिन के बाद इस मेला का अंत होता है।
निष्कर्ष
आशा करते है आपको हमारा ये लेख पचंद आया होगा। आपको कैसा लगा हमें निचे टिप्पणी करके जरूर बताना।