Tuesday, 5 February 2019

अनुष्ठानिक संगठन (Anusthanik Sangathan)

अनुष्ठानिक संगठन (Anusthanik Sangathan)

अनुष्ठानिक संगठन उसको कहा जाता है जिसमे समाज के व्यक्ति समूह अपने इच्छा से किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए सम्मिलित होता है तथा उसी सम्मिलन के दुवारा निर्धारित नीति-नियम के माध्यम से कार्य करता है। अनुष्ठानिक संगठन में किसी निर्धारित उद्देश्य, काम करने के विशेष पद्धिति और नीति-नियम का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है।
Anusthanik Sangathan,  Anusthanik Sangathan ki Viseshta

अनुष्ठानिक संगठन की विशेषता (Anusthanik Sangathan ki Viseshta)

1. निर्धारित लक्ष्य या उद्देश्य: - प्रत्येक अनुष्ठानिक संगठन का निर्धारित लक्ष्य होता है। इस लक्ष्य के बिना ऐसा संगठन बिलकुल ही मूल्यहीन होता है। इसीलिए यहाँ अनुष्ठान के प्रत्येक सदस्य निर्धारित नीति-नियम के माध्यम से अपने लक्ष्य को पूरा करने की कोसिस करता है। 


2. निर्धारित नीति-नियम: - जैसा की हमने आपको ऊपर बताया इसका दूसरा मुख्य विशेषता है निर्धारित नीति-नियम। इन सारे निर्धारित नियमो को संगठन का संबिधान भी कहाँ जा सकता है। इन सबको मानके चलने के लिए अनुष्ठान के सभी व्यक्ति बाध्य होते है। संगठन में किस व्यक्ति का कार्य क्या होगा, किसका पद उच्च होगा या किसका निम्न होगा ये सारे के सारे लिखित नीति-नियमो के माध्यम से समापन किआ जाता है।


3. उच्च-निम्न का बिभाजन: - अनुष्ठानिक संगठन का तीसरा मुख्य विशेषता है उच्च-निम्न का बिभाजन। यहाँ कर्मचारीओ को उच्च पद, माध्यम पद और निम्न पद इत्यादि भागो में बाटा जाता है। जो उच्च वर्ग के कर्मचारी होते उनका क्षमता भी ज्यादा होता है और जो निम्न वर्ग के कर्मचारी होते है उनका क्षमता भी कम होते है। बुरॉक्रसी ऐसा संगठनो के चरित्रों में ही होते है।

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4. उद्देश्य केंड्रिक संपर्क: -  इसका चौथा मुख्य विशेषता है उद्देश्य केंड्रिक संपर्क। यहाँ हर एक व्यक्ति का संपर्क किसी दूसरे व्यक्ति के साथ सम्पूर्ण रूप से उद्देश्य केंड्रिक होता है। घर, परिवार, दोस्त इत्यादि व्यक्तिगत संपर्क का महत्व काफी हद तक यहा मूल्यहीन होता है।


5. परिकल्पना केंड्रिक: - अनुष्ठानिक संगठन में भविश्व में क्या क्या कार्य किआ जायेगा, किस तरह किआ जायेगा, कौन करेगा, कहाँ किआ जायेगा इन सभी बातो के ऊपर ध्यान देके परिकल्पना प्रस्तुत किआ जाता है और इसी परिकल्पना सुषि अनुसार पद्धितिगत तरीके से कार्य किआ जाता है।


6. कर्म की गोपनीयता: - अनुष्ठानिक संगठन में भीतरी जो जो नीति-नियम प्रस्तुत किए जाते है वो किसी बाहर के व्यक्ति को नहीं बताया जाता। ये संगठन के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तब्य है की वो इस गोपनीयता को मानके चले तथा अपने अनुष्ठान की प्रगति में अपना योगदान दे। क्योकि अगर गोपनीयता भंग हुआ तो ये उनके संगठन हानिकारक हो सकता है।