सामाजिक असमानता क्या है ?
एक मानव समाज में बिभिन्न प्रकार के लोग रहते है। अगर हम इस बिभिन्नता की बात करे तो इस बिभिन्नता में कुछ होते है अमीर और कुछ होते है गरीब, कुछ होते है उच्च जाती के और इसके विपरीत कुछ होते है निम्न जाती के, कुछ होते पूर्णांग और कुछ होते है दिव्यांग।
दोस्तों मानव समाज में इन सब दिशाओ के आलावा भी वर्ण, धर्म, लिंग, भाषा इत्यादि को केंद्र करके भी बिभिन्नता होती है और इसी बिभिन्नता के साथ साथ असमानता भी आती है। लकिन दोस्तों समाजशास्त्रीक भाषा में ये असमानता क्या है ? क्या आपको ज्ञात है ?
अगर ज्ञात नहीं है तो सामाजिक असमानता की परिभाषा को हम यहाँ समझने की प्रयास करेंगे। तो चलिए सबसे पहले जानते है की सामाजिक असमानता क्या है ?
सबसे पहले कुछ लोगो की इस संकल्पना के ऊपर जो गलत धारणा है उसको एक कहानी के माध्यम से दूर करने की कोसिस करते है चलिए : - दो दोस्त थे, इन दोनों दोस्तों के बिच अपने जीबन को लेकर बहुत सारे आशा आकांशा भी थे। वे दोनों चाहते थे की उनके पास बहुत सारे धन दौलत हो, बड़ी बड़ी गाड़िया हो, समाज में अपना नाम रुतवा कायम हो।
लकिन इतने सारे एक जैसे आशा-आकांशा होने के बाउजूद भी उन दोनों दोस्तों में एक अन्तर था। एक चाहता था की सरकार उसके लिए नौकरी की व्यबस्था करे और दूसरा चाहता था की वे खुद कठोर परिश्रम करे और इससे एक बड़ा व्यापार खड़ा करे। समय बीतता गया और ऐसे ऐसे 5 साल समय बीत गया।
पांच साल बाद वे दोनों दोस्त एक दिन पुनः मिले और एक दोस्त ने दूसरे दोस्त को अपने हाल-साल बताने के लिए बोला। जो पहला दोस्त था यानि सरकारी नौकरी की आशा में बैठने वाला उसने बोला भाई मई तो अभीभी नौकरी ही ढूंढ रहा हु, पता नहीं सरकार क्यों हम जैसे बेरोजगारों के साथ ऐसा अन्याय क्यों करता है ? नौकरी अभीभी ढूंढ रहा हु लकिन अभी तक नहीं मिल पाया है।
अब इसने दूसरे को बोला की तुम अपना हाल-साल बताओ। अब जो बड़ा व्यापारी दोस्त था उसने बोलना सुरु किआ: - भाई भगवान के कृपा से आज पांच साल बाद मैंने अपने दो कंपनी बना ली है, जिसमे लगभग 5000 कर्मचारी रोज काम करते है और बाकि सब खुशहाल चल रही है।
दोस्तों इस काहानी में आपको असमानता कहाँ नजर आया ? बिलकुल इन दो दोस्तों के सोचो के आलावा और कही भी असमानता नहीं है। दोनों के सोच के इस अंतर ने ही एक को करोड़पति और दूसरे को बेरोजगार बनाके रखा।
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समाजशास्त्र में इस असमानता के ऊपर अध्ययन नहीं किआ जाता, लकिन दुःख की बात है कुछ लेखक इसको भी असमानता का रूप देने की कोसिस करते है। मई कहना चाहता हु जो जो लेखक ऐसे काम करते है वे उन लोगो को भी अपमान करते है जो अपने चेस्टा से आगे बढ़ते है।
दराचल समाजशास्त्रीक भाषा में सामाजिक असमानता एक अन्यापूर्ण आचरण या कार्य है, जो समाज के शक्तिशाली लोग दुर्बल श्रेणी के लोगो को शोषण, अत्याचार, अवदमित करने हेतु करते है।
अमेरिका में बहुत समय से पहले एक कथा प्रचलित है, उस कथा के अनुसार परिश्रम ही व्यक्ति के प्रगति का मूल मंत्र है।
लकिन हामारे यहाँ के कुछ पंडित इस बाक्य को समालोचना करते हुए अपना सफाई देते है की अगर परिश्रम ही व्यक्ति के प्रगति का मूल मंत्र है तो ठेलेवाले, रिक्शेवाले व्यक्तिओ की आर्थिक-सामाजिक अवस्था इतना खराब क्यों है ?
मेरे पंडित भाईओ मई आपको बता देना चाहता हु की पहले किसी बात की गंभीरता को समझे उसके बाद उस बात का उत्तर दे। वो कथा क्या कहना चाहते है ?
उस कथा के अनुसार परिश्रम व्यक्ति के प्रगति का मूल मंत्र है लकिन उस परिश्रम से जो धन अर्जन होता है उसको तो सही तरीके से सही काम लगाना भी पड़ेगा ना, नहीं तो कैसे आगे बड़ा जायेगा।
मई पहले ही उन परिश्रमी ठेलेवाले, रिक्शावाले भाईओ से क्षमा मांगना चाहता हु लकिन क्या है की ज्यादातर ऐसे कठोर परिश्रमी व्यक्ति पुरे दिन परिश्रम करने के बाद अपना ज्यादातर धन शराब पीने तथा अपने घर की छोटे-मोते जरूरतो को पूरा करने में ही व्यय कर देते है। उन पैसो को सही तरीके से व्यबहार करना वे नहीं जानते।
मई उन लेखको को बता देना चाहता हु की धन अर्जन के साथ साथ उसका सही तरीके से संग्रह भी एक परिश्रम ही है। आप लोग जो ये कठोर परिश्रम के ऊपर प्रश्न चिह्न लगा रहे हो वो सही नहीं है। मेरे हिसाब से ये हामारे ज्यादातर लोगो को श्रम बिमुख ही करेंगे, कोई भला नहीं।
क्या आप जानते हो दक्षिण भारत के सुपरस्टार रजनीकांत पहले एक bus कंडक्टर थे ? लकिन आज आप खुद देख सकते हो की वो क्या है और क्या कर रहे है ?
मेरे हिसाब से सामाजिक असमानता केवल एक अन्याय है जो समाज के क्षमताशाली वर्ग दुर्बल लोगो को शोषण या अत्याचार करने हेतु करते है। जब तक किसी समाज में अन्याय और शोषण केंड्रिक कार्य नहीं है तब तक उस समाज में सामाजिक असमानता भी नहीं है।
[कोई व्यक्ति अगर खुद आगे बढ़ने का प्रयास नहीं करता तो हम उसे सामाजिक असामनता नहीं बोल सकते]
सामाजिक अन्याय का कुछ उदाहरण: - पुरुष के दुवारा नारीऔ को अपने अधिकारों से बंचित करना, जाती व्यबस्था में उच्च जाती के लोगो दुवारा निम्न जाती के लोगो को अत्याचार और शोषण करना, भ्रस्टाचार के माध्यम से किसी अयोग्य व्यक्ति को किसी उच्च पद पर अधिष्ठित करवाना तथा योग्य को उससे बंचित करना इत्यादि।
खेर जो भी हो इसके कुछ चरित्रो को जानने की कोसिस करते है चलिए: -
1. सामाजिक असमानता हमेशा ही अन्यायपूर्णता से सम्पर्कित होता है। इसके जरिए समाज के शक्तिशाली या क्षमताशाली वर्ग दुर्वल वर्गों को शोषण, दमन और अत्याचार करते है।
2. सामाजिक असमानता से जिसके साथ किआ जाता है उनका अर्थ-सामाजिक, मानसिक, राजनैतिक अवस्था दिन व दिन ख़राब होता जाता है।
3. ये हमेशा ही किसी ना किसी कारण के माध्यम से विकशित होता। जैसे की जाती व्यबस्था, लिंग केंद्रिकता, आर्थिक अवस्था, राजनैतिक कारण इत्यादि इत्यादि।
सामाजिक असमानता का प्रभाव
1. नारी की सामाजिक अवस्था में पतन: - पुराने समय से देखा गया है की महिलाओ को पुरषो की तुलना में हमेशा ही निम्न माना जाता है। दुनिआ के ज्यादातर समाज पुरुष केंड्रिक होने के कारण महिलाओ को हमेशा ही तकलीफो का सामना करना पड़ता था।
आज भी हामारे भारत जैसे देशो के कुछ कुछ समाजो में महिलाओ को नौकरी या व्यापार करने, पढ़ने-लिखने की सुबिधा प्रदान नहीं की जाती है। जिसके कारण वे अभीभी बिभिन्न क्षेत्र में पुरषो की तुलना में निम्न स्थान पर है।
हाल ही में दो या एक साल पहले एक न्यूज़ आयी थी की उत्तर प्रदेश की किसी गाँव में एक लड़की को किसी लड़के ने बलात्कार कर दिआ। लकिन जब उस अपराधी की सजा की बात आयी तब उसको केबल चप्पल से दो या तीन बार मारकर ही माफ़ कर दिआ गया। लकिन इसके विपरीत लड़की को उस समाज ने अपने गाँव से ही बाहर निकाल दिआ।
आप जरा खुद सोचके देख सकते है की महिलाओ के साथ कितना बड़ा अन्याय हो रहा है। नारी की सामाजिक अवस्था में पतन लिंगकेन्द्रिक सामाजिक असमानता का एक बड़ा प्रभाव है।
2. निम्न जाती की मर्यादा का पतन: - हालाकि आज जाती व्यबस्था का प्राधान्य पहले की तुलना में काफी कम हो सुका है लकिन एक समय ऐसा था जब निम्न जाती के लोगो को मनुस्य ज्ञान भी नहीं किआ जाता था।
जाती व्यबस्था केंड्रिक असमानता के कारण निम्न जाती के लोगो की अवस्था तो ख़राब होता ही था लकिन जाती व्यबस्था से जो बाहर के लोग थे उनका अवस्था और भी ज्यादा ख़राब हो जाता था।
इन लोगो को उच्च जाती के लोग 'अस्पृश्य' ज्ञान करते थे। वे भी मानते थे की इन निम्न स्तर के लोगो की छाओ भी अपबित्र है। इसीलिए वे हमेशा ही उनसे दुरी बनाये रखते थे।
3. योग्यता का अपमान: - सामाजिक असमानता का एक और प्रभाव है योग्यता का अपमान। समाज में बढ़ रहे भ्रस्टाचार के कारण योग्य व्यक्ति को उचित सम्मान और अपने प्रतिभा का उचित मूल्य नहीं मिल पाटा।
इसके बिपरीत अयोग्य व्यक्तिओ को उच्च सम्मान और आदर मिलता है। इस असमानता के जरिए हुए योग्यता का अपमान के कारण देश और समाज भी उस तरह आगे नहीं बढ़ पाता, जिस तरह बढना चाहिए।
4. समाज के प्रगति में बाधा: - दुनिआ के हर एक समाज को प्रगतिशील होने के लिए सबसे पहले न्याय, एकता और यौक्तिक स्वतंत्रता जरूरत पड़ती है। लकिन जब किसी समाज में इन सभी दिशाओ के ऊपर असमानता बिराजमान होता है तब उस समाज की प्रगति ही बाधाग्रस्त हो जाती है।
इसीलिए सामाजिक असमानता जिस समाज में ज्यादा होता है वो समाज कभी भी तरीके से आगे नहीं बढ़ पाती।
मई आपसे पूछता हु की : - अगर भारत में आज भी जाती व्यबस्था अधिक शक्तिशाली होता तो क्या निम्न जाती के लोग इतना आगे बढ़ पाते, अगर भारत में आज भी नारिओ को घर के चार दीवारों के अंदर ही कैद करके रखती तो क्या इंदिरा नूई, इंदिरा गाँधी, हिमा दास जैसे क्रन्तिकारी महिलाओ को ये देश लाभ करती ? आप जरा खुद सोचके देखिए।
सामाजिक असमानता और शिक्षा
दुनिआ में ऐसा कोई भी समस्या नहीं है जिसको ज्ञान के माध्यम से समाधान ना किआ जा सके। लेकिन इसी ज्ञान को प्राप्त करने के लिए शिक्षा बेहद ही जरूरी चीज़ है। बहुत पहले के समय में जब लोगो के पास उपयुक्त आधुनिक शिक्षा नहीं था तब लोग अपने दुवारा किए गए किसी भी कार्य की सही-गलत रूप को समझ नहीं पाते थे।
एहि वो कारण था जिसके वजह से महिलाओ के ऊपर शोषण, अत्याचार किए जाते थे, निम्न जाती के लोगो को हमेशा अवदमित करके रखते थे, व्यक्ति का मूल्य भी जन्म के जरिए निर्धारित होते थे, कर्म के जरिए नहीं।
लकिन दोस्तों आज ये दुनिआ आधुनिक हो सुकि है, लोग पुराने निति-नियमो को लगभग त्याग कर सुके है। आधुनिक शिक्षा की विस्तार के कारण लोग समझ गए है की क्या सही है और क्या गलत।
मई ये नहीं कहूंगा की सामाजिक असमानता पूरी तरीके से ख़तम हो गयी है लकिन ये जरूर कह सकता हु की आने वाले दशको में हामारे देश से परंपरागत सामाजिक असमानताएं पूरी तरीके से ख़तम हो जाएगी। और जो नए असमानताएं है उनको ख़तम करने के लिए कठोर कानून व्यबस्था और उपयुक्त आधुनिक शिक्षा की जरूरत पड़ेगी।