प्राचीन भारतीय सोच [4 मुख्य]
1. कर्म के ऊपर बिस्वास: - प्राचीन भारतीय समाज में कर्म के ऊपर बिस्वास बहुत ही ज्यादा किआ जाता था। उस समय कर्म को ही धर्म का दरवाजा प्रदान किआ जाता था। हिन्दू धर्म की मूल धर्मग्रन्थ गीता में भी कर्म के ऊपर ब्रिस्टिट व्याख्या किआ गया है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने परम मित्र अर्जुन को धर्म और कर्म का ज्ञान प्रदान किआ है।
भगवत गीता के अलावा कर्म का प्राधान्य बेद, पुराण और रामायण इत्यादि धर्मग्रंथो में भी देखने मिलता है। उस समय ऐसा बिस्वास किआ जाता था की व्यक्ति का कर्म जैसा होता है उसको फल भी वैसा ही प्राप्त होता है।
![]() |
Image from Pixabay.com |
2. वर्ण व्यबस्था: - प्राचीन भारतीय समाज में वर्ण व्यबस्था का प्राधान्य सबसे ज्यादा था। उस समय वर्ण के ऊपर निर्भर करके समाज को ब्राह्मण, क्षत्रीय, वेश्य और शूद्र 4 मुख्य भागो में बाता जाता था। ये वर्ण व्यबस्था पूरी तरह से कर्म के ऊपर प्रतिष्ठित था।
वर्ण व्यबस्था के अनुसार ब्राह्मणो का काम था भगवान की पूजा करना, क्षत्रीय का काम था यूद्ध और राज्य शासन करना, वेश्य का काम था व्यापर करना और शूद्र का काम था इन तीन वर्णो के लोगो का कल्याण या सेवा करना।
लकिन ये बहुत ही दुखद बाद है की कर्म के ऊपर प्रतिष्ठित होने वाले वर्ण व्यबस्था बाद में जन्म के ऊपर प्रतिष्ठित जाती व्यबस्था में बदल गयी।
Related Articles: -
3. चार मुख्य आश्रम: - क्या आप जानते है की प्राचीन भारत में व्यक्ति के जीवन को चार मुख्य भागो में बाता जाता था? इनमे सबसे पहला था ब्रह्मचार्य, दूसरा था गार्हस्त्य, तीसरा था बानप्रस्थ और चौथा था सन्यास। इन चारो स्तरों के अनुसार व्यक्ति का कर्म कुछ इस प्रकार निर्धारित होता है : -
ब्रह्मचार्य: - व्यक्ति के जीबन की आरम्भ का समय। इसमें व्यक्ति शिक्षा ग्रहण करके अपने ज्ञान-बुद्धि, की विकाश करता है तथा अपने काम, क्रोध, लोभ इत्यादि प्रबित्तिऔ को दमन करना सीखता है।
गार्हस्त्य: - व्यक्ति इस स्तर में विवाह करवाके सांसारिक जीवन में प्रबेश करता है।
बानप्रस्थ: - ज्ञान और धर्मचर्चा का समय।
सन्यास: - दुनिआ के सारे माया-मोह त्याग करके इस स्तर में व्यक्ति अपने मुक्ति लाभ के लिए सोचता है।
4. सामाजिक संस्था का गठन तथा व्यबहार: - समाज को अच्छे से परिचालित करने के लिए प्राचीन भारतीय समाज में सामाजिक संस्थाओ के ऊपर काफी हद तक निर्भर किआ जाता था। उस समय के मूल सामाजिक संस्था जैसे की विवाह,परिवार, धर्म इत्यादि सामाजिक चंचालन में मुख्य भूमिका पालन करते थे।