Wednesday, 23 January 2019

संस्कृतिकरण की विशेषता

संस्कृतिकरण की विशेषता


1. एक जाती या समूह के भीतर गतिशीलता: - संस्कृतिकरण एक ऐसा प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी विशेष जाती या समूह के भीतर ही गतिशीलता आता है। 

अर्थात उस विशेष समूह के व्यक्तिआ अपने जाती या समूह को परिवर्तित नहीं करते बल्कि उस जाती या समूह में रहकर ही अपने पुराने नीति-नियम, बृत्ति, आचरण, खान-पान इत्यादि का परिवर्तन करती है।

लेकिन दोस्तों आप ये याद रखे की संस्कृतिकरण संकल्पना किसी एक या दो व्यक्तिओ के बिच आये हुए परिवर्तन को नहीं बोला जाता, ये एक बृहद धारणा है जो पुरे जाती या समूह को ही परिवर्तित करता है। 

आज संस्कृतिकरण की गति तेज़ होने का मुख्य कारण है तेज़ गति से हो रही पच्छिमीकरण और आधुनिकीकरण।


2. दीर्घकालीन चेस्टा: - संस्कृतिकरण एक दीर्घकालीन प्रक्रिया। ये कम समय के अंदर संभव नहीं हो सकता, इसके लिए काफी समय और चेस्टा की जरूरत पड़ती है।

किसी जाती को अपना सामाजिक स्थान इसके माध्यम से उन्नत करने के लिए दो या तीन पुरषो तक भी जरूरत पडती है।

उदाहरण के लिए हम दक्षिण भारत के निवासी कुर्ग जाती के बारे में ही बोल सकते है। 

दोस्तों इन लोगो ने कई पुरषो तक अपने सामाजिक प्रस्थिति को उन्नत करने हेतु प्रयास किआ, जिसका परिणाम आज उनके नए प्रजन्म भोग कर रहे है।  
संस्कृतिकरण की विशेषता
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3. भिन्न पद्धिति का प्रयोग: - संस्कृतिकरण की बहुत सारे प्रक्रिया या पद्धिति है। इन सारे पद्धितिओ को मुख्य रूप से दो भागो में बाटा गया है। 

एक प्रक्रिया के माध्यम से निम्न जाती या समूह के लोग उच्च जाती के लोगो की धर्म आचरण, खान-पान इत्यादि विषयो को अनुकरण करते है तथा अपने परंपरागत खान-पान, धर्म आचरण इत्यादि को त्याग करते है।

और जो दूसरा पद्धिति या माध्यम है, वो है पच्छिमीकरण। 

इसके माध्यम से निम्न जाती के लोग पश्चिमी देशो की शिक्षा पद्धिति, प्रौद्योगिकी, सोच प्रक्रिया इत्यादि को अनुकरण करते है तथा काफी हद तक अपने अंदर प्रयोग करके परिवर्तन लाते है।

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4. मानसिक सुख प्राप्ति: - संस्कृतिकरण के माध्यम जब कोई जाती अपने सामाजिक स्थान को उच्च स्तर पे ले जाने में शक्षम होती है तब उनको बहुत ही ज्यादा मानसिक सुख की प्राप्ति होती है। 

क्योकि इसके दुवारा उनके जीबन-यापन का मान काफी उन्नत हो जाता है।


5. राजनैतिक अवस्था के साथ सम्पर्कयूक्त: - समाज के राजनैतिक अवस्था संस्कृतिकरण प्रक्रिया को काफी हद तक प्रभाबित करता है। 

उदाहरण के रूप में कर्णाटक राज्य के कुर्ग जाती के लोगो की संस्कृतिकरण प्रक्रिया में ब्रिटिशो का बहुत ही ज्यादा योगदान था। 

अगर उस समय भारत में ब्रिटिश शासन प्रतिष्ठित नहीं होता तो आज भी कुर्ग जाती के लोग इतना आगे नहीं बढ़ पाते।

क्योकि पौराणिक भारत के राजतांत्रिक शासन व्यबस्था में किसी भी जाती को अपने सामाजिक स्थान जोर जदरदस्ती परिवर्तन करने का अधिकार नहीं था। 

उस समय माना जाता था व्यक्ति का सामाजिक स्थान उसका जनम ही निर्धारण करता है।

महान भारतीय समाजशास्त्रबिद M.N. Sriniwas ने इस कुर्ग जाती की संस्कृतिकरण प्रक्रिया के ऊपर विस्तार से अध्ययन किआ है।