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Saturday, 2 February 2019

उद्यौगिक समाजशास्त्र और इसके कार्य

उद्यौगिक समाजशास्त्र


मानव समाज आज जितना ज्यादा आगे बढ़ रहा है उद्योगीकरण की मात्रा भी उतनी ही ज्यादा तेजी से आगे बढ़ रही है। आज के समाज व्यबस्था का मूल चरित्र ही है उद्यौगिकरण, इसीलिए ज्यादातर समाजो को आज उद्यौगिक समाज ही कहा जाता है।

लकिन दोस्तों ऐसे समाजो का भी कुछ महत्वपूर्ण चरित्र होते है तथा उन चरित्रों के साथ साथ इनकी कुछ बिभाजन, कुछ सुबिधा तथा कुछ असुबिधाए या समस्याए होती है।

समाजशास्त्र को तो इन सबके बारे में अध्ययन करना पड़ेगा, इसीलिए इस विषय को अध्ययन करने के लिए एक नए शाखा की सृस्टि की गयी है। उद्यौगिक समाज के सामाजिक सम्बन्धो को अध्ययन करने वाली इस शाखा को ही उद्यौगिक समाजशास्त्र कहाँ जाता है।
उद्यौगिक समाजशास्त्र और इसके कार्य, udyougik samajsastra kya hai

उद्यौगिक समाजशास्त्र के कार्य

1. समाज अध्ययन तथा ज्ञान आहरण: - समाजशास्त्र का ये विशेषता ही होता है की इसके माध्यम से मानव समाज को अध्ययन किआ जाता है। उद्यौगिक समाजशास्त्र का पहला कार्य भी एहि होता है, फर्क सिर्फ इतना है की इसके अध्ययन परिधि उद्यौगिक समाज तक ही सिमित रहते है।

ये भी उद्यौगिक समाज के सन्दर्भ बिभिन्न विषयो के ऊपर अध्ययन करता है तथा सत्य को उद्घाटन करने की कोसिस करता है। इसलिए इसका प्रथम कार्य है उद्यौगिक समाज के सन्दर्भ यथार्थ ज्ञान आहरण करना।


2. सामाजिक समस्या का समाधान: - 1839 में समाजशास्त्र का जन्म ही इसीलिए हुआ था की सामाजिक समस्याओ को वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन कर सके तथा उन समस्याओ का समाधान कर सके।

उद्यौगिक समाजशास्त्र का कार्य भी एहि है। क्योकि ऐसे समाजो अपराध मात्रा जैसे की चोरी, डकइती, हत्या, आत्महत्या इत्यादि बहुत ही ज्यादा होती है। इसीलिए ये अध्ययन करता है की कैसे वैज्ञानिक तरीके का व्यबहार करके उन समस्याओ के ऊपर अध्ययन करे तथा समाज को उनसे मुक्त करे।

Friday, 1 February 2019

उद्यौगिक समाज क्या है और इसकी विशेषता

उद्यौगिक समाज क्या है और इसकी विशेषता 


दोस्तों आधुनिक समाज और उद्यौगिक समाज इन दोनों संकल्पनाओ को देखने से ऐसा अनुभव होता है की ये दोनों काफी हद तक एक जैसे ही है। हालाकि उद्यौगिक समाज अध्ययन का क्षेत्र आधुनिक समाज के अध्ययन क्षेत्र से काफी छोटा होता है। क्योकि उद्यौगिक समाज आधुनिक समाज का केबल एक भगमात्र ही है।

दोस्तों आजके हामारे इस लेख का मूल विषयवस्तु है उद्यौगिक समाज। हम यहाँ जानने की कोसिस करेंगे की ऐसे समाज की मर्यादा किसको दिआ जाता है तथा इसकी मुख्य विशेषताए क्या क्या होती है ? इत्यादि इत्यादि। तो चलिए आरम्भ करते है।
उद्यौगिक समाज क्या है और इसकी विशेषता

उद्यौगिक समाज क्या है?

एकदम सरल भाषा में कहे तो प्राक-उद्यौगिक समाज व्यबस्था के बाद के समाज व्यबस्था को ही उद्यौगिक समाज कहाँ जाता है। क्या आपने समझा जो मैंने कहाँ ? अगर नहीं तो चलिए ठीक से समझने की कोसिस करते है।

पहले की समय में इंसान अपने सारे कार्य खुद ही करते थे। अर्थात अपने शारीरिक श्रम के माध्यम से और साथ में कभी कभी जंतुऔ के श्रम का भी व्यबहार करते थे। लकिन समय बदलता गया। इंसानो ने अपने आराम के लिए तथा शारीरिक श्रम से मुक्ति पाने के लिए धीरे धीरे कुछ यंत्रो का अविष्कार करना सुरु किआ।

जिसके फलसवरूप प्रथम अविष्कार हुआ पहिया का। लकिन इंसानो ने और भी ज्यादा शारीरिक श्रम से मुक्ति पाने के लिए कोसिस करता गया। इसके कारण धीरे धीरे मानव समाज में और भी यंत्रो का अविष्कार तथा व्यबहार होने लगा। और इस तरह पूरा समाज ही यांत्रिक श्रम का आदि हो गया। अर्थात किसी कार्य को करने के लिए मानव या जंतु श्रम के बदले यंत्रो के श्रम का व्यबहार होने लगा।

दोस्तों सायद आप अब सुके होंगे की जिस समाज में ज्यादातर कार्यो करने के लिए मानव या जंतु श्रम के बदले मशीन या यांत्रिक श्रम का व्यबहार किआ जाता है उसी को यांत्रिक या उद्यौगिक समाज कहाँ जाता है। उद्यौगिक समाज में ज्यादातर उद्पादन कार्य यंत्र के माध्यम से ही होते है। वहाँ मानव श्रम का व्यबहार केबल यंत्रो को चलाने के लिए ही होता है।