Friday, 1 February 2019

उद्यौगिक समाज क्या है और इसकी विशेषता

उद्यौगिक समाज क्या है और इसकी विशेषता 


दोस्तों आधुनिक समाज और उद्यौगिक समाज इन दोनों संकल्पनाओ को देखने से ऐसा अनुभव होता है की ये दोनों काफी हद तक एक जैसे ही है। हालाकि उद्यौगिक समाज अध्ययन का क्षेत्र आधुनिक समाज के अध्ययन क्षेत्र से काफी छोटा होता है। क्योकि उद्यौगिक समाज आधुनिक समाज का केबल एक भगमात्र ही है।

दोस्तों आजके हामारे इस लेख का मूल विषयवस्तु है उद्यौगिक समाज। हम यहाँ जानने की कोसिस करेंगे की ऐसे समाज की मर्यादा किसको दिआ जाता है तथा इसकी मुख्य विशेषताए क्या क्या होती है ? इत्यादि इत्यादि। तो चलिए आरम्भ करते है।
उद्यौगिक समाज क्या है और इसकी विशेषता

उद्यौगिक समाज क्या है?

एकदम सरल भाषा में कहे तो प्राक-उद्यौगिक समाज व्यबस्था के बाद के समाज व्यबस्था को ही उद्यौगिक समाज कहाँ जाता है। क्या आपने समझा जो मैंने कहाँ ? अगर नहीं तो चलिए ठीक से समझने की कोसिस करते है।

पहले की समय में इंसान अपने सारे कार्य खुद ही करते थे। अर्थात अपने शारीरिक श्रम के माध्यम से और साथ में कभी कभी जंतुऔ के श्रम का भी व्यबहार करते थे। लकिन समय बदलता गया। इंसानो ने अपने आराम के लिए तथा शारीरिक श्रम से मुक्ति पाने के लिए धीरे धीरे कुछ यंत्रो का अविष्कार करना सुरु किआ।

जिसके फलसवरूप प्रथम अविष्कार हुआ पहिया का। लकिन इंसानो ने और भी ज्यादा शारीरिक श्रम से मुक्ति पाने के लिए कोसिस करता गया। इसके कारण धीरे धीरे मानव समाज में और भी यंत्रो का अविष्कार तथा व्यबहार होने लगा। और इस तरह पूरा समाज ही यांत्रिक श्रम का आदि हो गया। अर्थात किसी कार्य को करने के लिए मानव या जंतु श्रम के बदले यंत्रो के श्रम का व्यबहार होने लगा।

दोस्तों सायद आप अब सुके होंगे की जिस समाज में ज्यादातर कार्यो करने के लिए मानव या जंतु श्रम के बदले मशीन या यांत्रिक श्रम का व्यबहार किआ जाता है उसी को यांत्रिक या उद्यौगिक समाज कहाँ जाता है। उद्यौगिक समाज में ज्यादातर उद्पादन कार्य यंत्र के माध्यम से ही होते है। वहाँ मानव श्रम का व्यबहार केबल यंत्रो को चलाने के लिए ही होता है। 

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उद्यौगिक समाज की विशेषता

1. उद्पादन कार्य में यन्त्र का व्यबहार: - ये इसका प्रथम विशेषता है। ऐसे समाजो में उद्पादन कार्य के ज्यादातर भाग मानव नहीं बल्कि यन्त्र करते है। वहाँ मानव श्रम का व्यबहार ज्यादातर यंत्रो के चालन के लिए ही होते है। दिन दिन यंत्रो का व्यबहार जितना ज्यादा होता जा रहा है मानव श्रम का महत्व उतना ही कम होता जा रहा है।

2. बिभिन्न प्रकार के कर्म: - एक उद्यौगिक समाज में बिभिन्न प्रकार के कर्म की सुबिधा का जनम होता है। प्राक-उद्यौगिक समाज को अगर आप ध्यान से देखोगे तो पता चलेगा की वहाँ पहले केवल एक प्रकार के श्रम में समाज के ज्यादातर लोग नियोजित रहते थे। लकिन उद्यौगिक समाज में ऐसा नहीं होता है। वहाँ बिभिन्न प्रकार के लोग बिभिन्न प्रकार के कर्म में नियोजित रहते है। उदाहरण: - गाड़ी चलाने वाले, फल-सब्जी बेचने वाले, दूकानदार, होटल चलाने इत्यादि इत्यादि।

3. एकल परिवार व्यबस्था: - उद्यौगिक समाज तीसरा मुख्य विशेषता है एकल परिवार व्यबस्था का महत्व। यहाँ संयुक्त परिवार का प्राधान्य बहुत ही कम होता है। दराचल ज्यादातर लोग गॉवो से नौकरी की तलाश में यहाँ आके बचने के कारण गॉवो का संयुक्त परिवार शहर में एकल परिवार में बदल जाता है।

4. कृत्रिम या अनुस्तानिक व्यक्ति संपर्क: - उद्यौगिक समाज में व्यक्तिओ के बिच का संपर्क कृत्रिम रूप से गठन होता है। यहाँ ज्यादातर व्यक्तिओ के बिच अनुभूतिक आधार का महत्व नहीं होता, जो हमको गॉवो में देखने मिलता है। यहाँ के ज्यादातर संपर्क किसी विशेष नीति-नियम तथा वस्तुकेन्द्रिक उद्देश्य को केंद्र करके होता है।

5. व्यापार केंड्रिक अर्थव्यबस्था: - उद्यौगिक समाज में जो जो उद्पादन कार्य किए जाते है, वो उद्पादनकारी के भोग के लिए नहीं होता बल्कि बेचने तथा व्यापार करने के लिए होता है। दोस्तों परंपरागत समाज व्यबस्था में आपको इसके एक सम्पूर्ण विपरीत चित्र ही देखने मिलेगा जिसमे उद्पादन कार्य किए जाते है ताकि भोग कर सके। व्यापार केंड्रिक अर्थव्यबस्था उद्यौगिक समाज का एक महत्वपूर्ण विशेषता है।