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Friday, 22 March 2019

सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत

सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत


दोस्तों दुनिआ के प्रत्येक मानव समाज का मुख्य विशेषता ही है परिवर्तन। ये परिवर्तन तेज गति से भी हो सकता है और धीमी गति से भी हो सकता है, रैखिक प्रक्रिया में भी हो सकता है और चक्रीय प्रक्रिया में भी।  

दोस्तों इससे पहले की लेख में हमने जाना था की सामाजिक परिवर्तन का रैखिक सिद्धांत क्या है ? इस लेख में हम जानेंगे की सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत क्या है ? तो चलिए इस प्रश्न के उत्तर ढूंढ़ने के माध्यम से ही इस लेख को सुरु करते है।
सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत

सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत क्या है ?

दुनिआ के ज्यादातर समाजो में कुछ पद्धिति या प्रक्रिया ऐसा होता है जो कुछ समय तक समाज में प्रचलित तो रहते है लेकिन समय बीतने के साथ साथ वो पद्धिति भी समाज से लगभग गायब हो जाता है। 

दोस्तों ऐसे गायब हो सुके पद्धितिया कुछ समय तक उस समाज से बेर पालके चलते है।

लेकिन उस समय के बीतने बाद देखा जाता है की वो पद्धिति पुनः उस समाज में लौट आते है। दोस्तों ऐसे चक्रीय प्रक्रिया के माध्यम से लौट आए ऐसे सामाजिक परिवर्तन प्रक्रियाओं को ही सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत कहाँ जाता है।

उदाहरण के रूप में लोगो की वेषभूषाओ के क्षेत्र में ये परिवर्तन प्रक्रिया ज्यादातर देखा जाता है। चलिए आपको एक सरल उदाहरण के माध्यम से इसको समझने में मदद करते है।

Friday, 15 February 2019

कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धांत

कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धांत


दोस्तों हम सभी तो ये जानते है की जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स के सभी सिद्धांत वस्तुजगत को केंद्र करके ही विकशित हुआ है, चाहे वो ऐतिहासिक भौतिकताबाद या फिर मानव समाज परिवर्तन के छे मुख्य स्तर ही क्यों ना हो। 

उनके इन्ही सिद्धांतो में से एक अन्यतम है उनका वर्ग संगर्ष सिद्धांत। उनका ये वस्तुकेन्द्रिक सिद्धांत भी पूर्ण रूप से वस्तुजगत के ऊपर प्रतिष्ठित है

मार्क्स के अनुसार मानव जाती का इतिहास ही श्रेणी या वर्ग संघर्ष का इसिहास है, मानव समाज एक स्तर से दूसरे स्तर तक इसी संघर्ष के माध्यम से आगे बढ़ते है। 

तो फिर चलिए इसको और ज्यादा कठिन बनाये बिना उनके ही दृष्टिकोण से आकर वर्ग संघर्ष सिद्धांत को आलोचना करते है।
कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धांत

वर्ग संघर्ष सिद्धांत : - मार्क्स ने उनके समय की पूंजीवादी व्यबस्था की व्याख्या करते हुए ही इस सिद्धांत को आगे रखा है। 

उनके अनुसार पूंजीवादी व्यबस्था में दो मुख्य वर्ग के लोग होते है। एक होते है बुर्जुआ और दूसरे होते है प्रोलिटेरिएट।

बुर्जुआ जो वर्ग है, वो है समाज के धनी पूंजीपति श्रेणी। इस श्रेणी के पास ही उद्पादन के सारे उपादान मौजूद होते है, जैसे की धन, जमीन और श्रमिक (Land, Labour और Capital)

दूसरी ओर जो प्रोलिटेरिएट वर्ग होते है, वो होते है समाज के श्रमिक श्रेणी।

इनके पास कोई भी क्षमता नहीं रहता। वो केबल अपने जीबन-यापन के लिए पूँजीपतिओ के निचे उनके उद्द्योगो या कर्म प्रतिस्थानो में काम करते है या फिर यु कहे तो धन के बदले अपना श्रम बेचते है।

दोस्तों पूंजीपति या बुर्जुआ और श्रमिक या प्रोलिटरिएट वर्ग के इस कहानी में अचल मौर अब आता है। 

दराचल बात यह है की पूंजपति हमेशा ही अपने लाभ के लिए सोचता है, और इस लाभ को दिन दिन बढ़ाने के लिए वे श्रमिकों की वेतन कम कर देते है या उनसे अधिक समय काम करवाते है।

Thursday, 14 February 2019

जॉर्ज हर्बर्ट मीड

जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead in Hindi)


विशिस्ट समाजशास्त्रविद जॉर्ज हर्बर्ट मीड एक अमेरिकन दार्शनिक थे। उनका जनम हुआ था सं 1863 के 27 फेब्रुअरी को अमेरिका के मेसाचुसेट्स में। उनके पिता नाम था हीराम मीड और माता का नाम था एलिज़ाबेथ स्टोरर्स। जॉर्ज हर्बर्ट मीड के पिता एक पुरोहित थे।

इसलिए उनके माता-पिता चाहते थे की वो भी आगे चलके एक पुरोहित ही बने लकिन जॉर्ज को पुरोहित बनने से ज्यादा दर्शन के प्रति ही आग्रह ज्यादा था। इसीलिए 1883 में उन्होंने अवरलीन (अवरलीन अमेरिका के Ohio में स्थित है) कॉलेज से स्नातक पूरा करने के बाद हर्बर्ड यूनिवर्सिटी में दर्शन और मनस्तत्व बिभाग के ऊपर एडमिशन ले लिआ।
George Herbert Mead in Hindi
दर्शन और मनस्तत्व के ऊपर अपना शिक्षा पूरा करने के बाद उन्होंने इन्ही दो विषयो के ऊपर मिशिगन, चिकागो, लिपजिंग और बर्लिन विस्वविद्यालय में अध्यपना किआ।

दोस्तों क्या आप जानते है की जॉर्ज हर्बर्ट मीड क्यों इतना बिख्यात थे ? दराचल उनके बिख्यात होने का कई मुख्य कारण है, लकिन कारणों में से जो सबसे महत्वपूर्ण है वो है उनका - 'व्यक्तित्व विकाश के ऊपर अध्ययन'

मीड ने कई सारे ग्रंथो की भी रचना की थी। जिनमे से ये दो मुख्य माने जाते है: -

1. Philosophy of the present
2. Mind, Self and Society

मीड ने उनके Mind, Self and Society (1934) नामक ग्रन्थ में मनुस्य की 'व्यक्तित्व विकाश के ऊपर अध्ययन' किआ था।  दोस्तों चलिए उनके इस सिद्धांत को जानने की कोसिस करते है।