सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत
दोस्तों दुनिआ के प्रत्येक मानव समाज का मुख्य विशेषता ही है परिवर्तन। ये परिवर्तन तेज गति से भी हो सकता है और धीमी गति से भी हो सकता है, रैखिक प्रक्रिया में भी हो सकता है और चक्रीय प्रक्रिया में भी।
दोस्तों इससे पहले की लेख में हमने जाना था की सामाजिक परिवर्तन का रैखिक सिद्धांत क्या है ? इस लेख में हम जानेंगे की सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत क्या है ? तो चलिए इस प्रश्न के उत्तर ढूंढ़ने के माध्यम से ही इस लेख को सुरु करते है।
सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत क्या है ?
दुनिआ के ज्यादातर समाजो में कुछ पद्धिति या प्रक्रिया ऐसा होता है जो कुछ समय तक समाज में प्रचलित तो रहते है लेकिन समय बीतने के साथ साथ वो पद्धिति भी समाज से लगभग गायब हो जाता है।
दोस्तों ऐसे गायब हो सुके पद्धितिया कुछ समय तक उस समाज से बेर पालके चलते है।
लेकिन उस समय के बीतने बाद देखा जाता है की वो पद्धिति पुनः उस समाज में लौट आते है। दोस्तों ऐसे चक्रीय प्रक्रिया के माध्यम से लौट आए ऐसे सामाजिक परिवर्तन प्रक्रियाओं को ही सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत कहाँ जाता है।
उदाहरण के रूप में लोगो की वेषभूषाओ के क्षेत्र में ये परिवर्तन प्रक्रिया ज्यादातर देखा जाता है। चलिए आपको एक सरल उदाहरण के माध्यम से इसको समझने में मदद करते है।