जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead
in Hindi)
विशिस्ट समाजशास्त्रविद जॉर्ज हर्बर्ट मीड एक अमेरिकन दार्शनिक थे। उनका जनम हुआ था सं 1863 के 27 फेब्रुअरी को अमेरिका के मेसाचुसेट्स में। उनके पिता नाम था हीराम मीड और माता का नाम था एलिज़ाबेथ स्टोरर्स। जॉर्ज हर्बर्ट मीड के पिता एक पुरोहित थे।
इसलिए उनके माता-पिता चाहते थे की वो भी आगे चलके एक पुरोहित ही बने लकिन जॉर्ज को पुरोहित बनने से ज्यादा दर्शन के प्रति ही आग्रह ज्यादा था। इसीलिए 1883 में उन्होंने अवरलीन (अवरलीन अमेरिका के Ohio में स्थित है) कॉलेज से स्नातक पूरा करने के बाद हर्बर्ड यूनिवर्सिटी में दर्शन और मनस्तत्व बिभाग के ऊपर एडमिशन ले लिआ।
दर्शन और मनस्तत्व के ऊपर अपना शिक्षा पूरा करने के बाद उन्होंने इन्ही दो विषयो के ऊपर मिशिगन, चिकागो, लिपजिंग और बर्लिन विस्वविद्यालय में अध्यपना किआ।
दोस्तों क्या आप जानते है की जॉर्ज हर्बर्ट मीड क्यों इतना बिख्यात थे ? दराचल उनके बिख्यात होने का कई मुख्य कारण है, लकिन कारणों में से जो सबसे महत्वपूर्ण है वो है उनका - 'व्यक्तित्व विकाश के ऊपर अध्ययन'।
मीड ने कई सारे ग्रंथो की भी रचना की थी। जिनमे से ये दो मुख्य माने जाते है: -
1.
Philosophy of the present
2.
Mind, Self and Society
मीड ने उनके Mind, Self and
Society (1934) नामक ग्रन्थ में मनुस्य की 'व्यक्तित्व विकाश के ऊपर अध्ययन' किआ था। दोस्तों चलिए उनके इस सिद्धांत को जानने की कोसिस करते है।
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जॉर्ज हर्बर्ट मीड के व्यक्तित्व विकाश सिद्धांत (George Herbert Mead Self Development Theory in Hindi)
इस सिद्धांत को व्याख्या करते हुए मीड ने व्यक्ति के मानसिकता शिशु अवस्था से कैसे धीरे धीरे विकशित होता है उसी को व्याख्या किआ है। उन्होंने इस सिद्धांत में व्यक्ति के व्यक्तित्व विकाश के स्तर को दो मुख्य भागो में बाता है।
इनमे से पहला है "मई या I" स्तर और दूसरा है 'हम या we' स्तर।
1. मई या I: - ये स्तर व्यक्ति जीबन का प्रारम्भ स्तर है। इस स्तर में व्यक्ति या शिशु हमेशा ही अपने बारे में सोचता है अर्थात उसको जो अच्छा लगता है वो वही करता है। इनमे दुसरो का किआ लाभ या हानि हो सकता है, वो सोचने के लिए शिशु कभी भी तैयार नहीं रहता।
उदाहरण: - कभी कभी हम मेलाओ में देखते है की छोटे छोटे बच्चे अपने माता पिता से किसी खिलोने को देने के लिए जिद करते है और अगर माता-पिता मना करता है तो वही पर बच्चे रोना-धोना सुरु कर देते है।
दोस्तों इस कार्य को करते हुए वो ये नहीं सोच पाते की उनके माता-पिता के पास धन है या फिर नहीं नहीं। केवल अपने सुख के दुवारा परिचालित होने तथा अपने दुवारा किए गए घटना के कार्य-कारण को समझ ना पाने के कारण इस स्तर को मीड ने 'I या मई' स्तर नाम से नामांगकृत किआ है।
2. हम या We: - 'I या मई' स्तर के अंत के बाद व्यक्ति के जीबन में आरम्भ होता है 'हम या We' स्तर। इस स्तर में शिशु धीरे धीरे समझने लगता है की अपने के साथ साथ दुसरो का सुख भी जरूरी है। इसके करणवर्ष उनका मन धीरे धीरे यौक्तिशील हो जाता है। अन्य व्यक्ति की अवस्थिति, सुख या स्वार्थ भी उनके लिए तात्पर्यशील हो जाता है।
मीड कहते है की 'हम या We' में शिशु की मानसिकता पूर्ण रूप से विकशित हो जाता है और वे एक सामाजिक व्यक्ति बनने के लिए तैयार हो जाते है।