धर्म के ऊपर निबंध
क्या आप जानते है की इस दुनिआ में कुल 4200 भिन्न प्रकार के धर्म विस्वास है ? लकिन दोस्तों इतने सारे धर्म विस्वासो की जरूरत क्या है, क्यों इस दुनिआ में इतने ज्यादा धर्म विस्वासो का विस्तार होने लगा ?
क्या आप जानना नहीं चाहोगे ? तो चलिए आज इस लेख की सुरुवात इस प्रश्न के उत्तर ढूंढ़ने से ही करते है।
क्या आप जानना नहीं चाहोगे ? तो चलिए आज इस लेख की सुरुवात इस प्रश्न के उत्तर ढूंढ़ने से ही करते है।
धर्म क्या है ?: - ये दुनिआ बहुत ही बड़ी है और इस बड़ी दुनिआ में लाखो, करोड़ो की तादाद में मानव समाज बसते है।
दोस्तों समाज यानि सामाजिक सम्बन्ध का एक जाल, यहां हर एक व्यक्ति का कार्य प्रक्रिया दूसरे व्यक्ति की स्वार्थ के ऊपर प्रभाव बिस्तार करता है।
दोस्तों समाज यानि सामाजिक सम्बन्ध का एक जाल, यहां हर एक व्यक्ति का कार्य प्रक्रिया दूसरे व्यक्ति की स्वार्थ के ऊपर प्रभाव बिस्तार करता है।
इसीलिए समाज के हर एक व्यक्ति को अपने कार्य ऐसे करना पड़ता है की इससे दूसरे इंसान की कोई भी क्षति ना हो।
आधुनिक समय में कानून व्यबस्था आ सुका है लेकिन दोस्तों पौराणिक समय में कानून व्यबस्था नहीं था या इतना शक्तिशाली नहीं था, जितना की आज है।
आधुनिक समय में कानून व्यबस्था आ सुका है लेकिन दोस्तों पौराणिक समय में कानून व्यबस्था नहीं था या इतना शक्तिशाली नहीं था, जितना की आज है।
इसीलिए उस समय पर समाज ने किसी विशेष विशेष मूल्यबोधों के ऊपर निर्भर करके धर्म नाम की सामाजिक संस्था का प्रतिष्ठा करवाया।
अगर हम अपने भाषा में कहे तो समाज के लोगो की आचरणों को नियंत्रित करने के हेतु ही धर्म का जन्म हुआ था।
अगर हम अपने भाषा में कहे तो समाज के लोगो की आचरणों को नियंत्रित करने के हेतु ही धर्म का जन्म हुआ था।
दुनिआ में लाखो की तादाद में समाज होने के करणवर्ष बिभिन्न जगहों पर लोगो का विस्वास भी अलग अलग हो गया और इसी करणवर्ष दुनिआ में हज़ारो अलग अलग धर्मो का विकाश तथा जन्म भी होने लगा।
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5. श्रमिक संघ
धर्म के ऊपर निबंध - धर्म और पूजा-पाठ का सम्बन्ध
प्रकृति ने ही मानव को धर्म विस्वासो का जन्म देने के लिए बाध्य किआ। पौराणिक समय में प्राकृतिक घटना जैसे की भूकंप, बाढ़ इत्यादि को देवता, भुत-प्रेत का कांड माना जाता था।
इसीलिए इंसानो ने उस समय इन अदृश्य शक्तिओ को संतुस्ट करने हेतु पूजा-पाठ करना सुरु कर दिआ।
इसीलिए इंसानो ने उस समय इन अदृश्य शक्तिओ को संतुस्ट करने हेतु पूजा-पाठ करना सुरु कर दिआ।
और समाज में ये नियम धीरे धीरे बांध दिआ की इन अदृश्य शक्तिओ की पूजा-पाठ करना बेहद ही जरूरी है।
क्योकि उस समय लोग ये मानते थे की अगर समाज के किसी व्यक्ति ने इन पूजा-पाठ, बलि-बिधान का विरुद्ध किआ तो वो उनके पुरे समाज के हानिकारक हो जायेगा।
क्योकि उस समय लोग ये मानते थे की अगर समाज के किसी व्यक्ति ने इन पूजा-पाठ, बलि-बिधान का विरुद्ध किआ तो वो उनके पुरे समाज के हानिकारक हो जायेगा।
[इसीलिए आज भी पूजा-पाठ, बलि-बिधान का विरोध करने वाले व्यक्तिओ को कुछ कुछ समाज अधर्मी मानते है]
इसीलिए उस समय प्रत्येक व्यबक्ति के मनमें समाज के इन धारणाओं मानने के लिए एक डर बेथ गया और बाद में वही डर अभ्यास में बदल गया।
आज समाज के बहुत सारे लोग पूजा-पाठ को ही धर्म समझते है लेकिन दोस्तों आधुनिक सोच के अनुसार ये पूजा-पाठ कोई धर्म नहीं है।
आज समाज के बहुत सारे लोग पूजा-पाठ को ही धर्म समझते है लेकिन दोस्तों आधुनिक सोच के अनुसार ये पूजा-पाठ कोई धर्म नहीं है।
[डर का मुख्य कारण था समाज और देवताओ को रुस्त ना करना]
ये सारे अतिभौतिक अवस्था में लोगो के अज्ञानता के कारण जन्मे केवल कुछ सोच है, जो समाज को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता।
आरम्भ से ही धर्म का लक्ष था समाज को सुरक्षा प्रदान करना और इसके लिए बिभिन्न कार्य करना।
आरम्भ से ही धर्म का लक्ष था समाज को सुरक्षा प्रदान करना और इसके लिए बिभिन्न कार्य करना।
पूजा-पाठ को भी अतिभौतिक अवस्था में समाज को सुरक्षा देने के लिए ही आरम्भ किआ गया था, क्योकि लोग समझते थे की अतिमानवीय शक्तिओ से अगर रक्षा पाना है तो पूजा पाठ करना बेहद ही जरूरी है।
हालाकि आधुनिक युग की आरम्भ होने के कारण लोग जान सुके है की पूजा-पाठ से समाज का भला नहीं बल्कि ज्यादा अपकार ही होता है।
धर्म के ऊपर निबंध- धर्म का चरित्र
1. धर्म एक सार्वजनीन सामाजिक संस्था है। दुनिआ का प्रत्येक मनुष्य किसी ना किसी विशेष धर्म विस्वास का आदि होता है अर्थात किसी धर्म विस्वास को मानके चलते है।
2. धर्म का दूसरा चरित्र है की ये एक अत्यंत ही पुराणा सामाजिक संस्था है। मानव समाज में हज़ारो साल पहले से ही धर्म विस्वास चल रहा है।
कहा जाता है इंसानो ने जबसे अतिभौतिक शक्तिओ के ऊपर विस्वास करना सुरु किआ तबसे इस दुनिआ में धर्म विस्वास का प्राधान्य चल रहा है।
कहा जाता है इंसानो ने जबसे अतिभौतिक शक्तिओ के ऊपर विस्वास करना सुरु किआ तबसे इस दुनिआ में धर्म विस्वास का प्राधान्य चल रहा है।
3. धर्म का उद्देश्य हमेशा ही मानव कल्याण के ऊपर प्रतिष्ठित है। कुछ लोग इसके प्रकृत महत्व को ना समझने के कारण समाज का अपकार करके बैठते है।
4. इस दुनिआ में धर्म का बिभिन्न प्रकार है। एक हिसाब के अनुसार आज के समय में इस दुनिआ में लगभग 4200 बिभिन्न धर्म विस्वास है।
5. धर्म का पांचवा विशेषता है मानव मुक्ति। लोग समझते है की धर्म मनुस्य को बांधता है लकिन मई समझता हु की ये अचल सत्य नहीं है।
ये हमेशा ही किसी किसी निर्धारित नीति-नियम के माध्यम मानव मुक्ति को समर्थन प्रदान करता है।
ये हमेशा ही किसी किसी निर्धारित नीति-नियम के माध्यम मानव मुक्ति को समर्थन प्रदान करता है।
धर्म के ऊपर निबंध - दुनिआ का 10 मुख्य धर्म विस्वास
1. क्रिस्चियन : - 240 करोड़
2. इसलाम : - 180 करोड़
3. हिन्दू : - 115 करोड़
4. बुद्धिस्ट : - 52 करोड़
5. सिख : - 3 करोड़
6. जैन : - 42 लाख
7. शिंटो : - 40 लाख
8. प्रजातीय धर्म : - 30 करोड़
9. चीनी पारंपरिक धर्म : - 39 करोड़
10. अफ्रीकी पारंपरिक धर्म : - 10 करोड़