सामाजिक अध्ययन में परिकल्पना का महत्व
1. सामाजिक अध्ययन में परिकल्पना का प्रथम महत्व है की ये अध्ययन कार्य को एक विशेष रस्ता प्रदान करता है। अगर आप कभी घूमने जाओ और आपको पता ही नहीं है की आपको कहा जाना है तो आप क्या करोगे?
निश्चित रूप से अपना रास्ता खो दोगे। सामाजिक अध्ययन में भी एहि होता है। अगर अध्ययनकारी पहले से ही अध्ययन करने के लिए परिकल्पना प्रस्तुत ना कर ले तो उसको अपने कार्य को आगे बढ़ाके ले जाने में काफी दिक्कत होगी।
2. परिकल्पना प्रस्तुतकरण के माध्यम से अध्ययनकारी को ये समझने में काफी आसानी होती है की पहले स्तर में वो क्या करेगा, दूसरे स्तर में क्या करेगा और तीसरे स्तर में क्या करेगा। अर्थात परिकल्पना अध्ययन कार्य को पर्यायक्रम में विभक्त करने हेतु काफी मदद करती है।
3. दोस्तों परिकल्पना का तीसरा महत्व है अध्ययन कार्य के अंत में प्रकृत सत्य को उद्घाटन करना।
ज्यादातर परिकल्पना के आरम्भ में जिस सत्य को सोचा जाता है, वो तो अंत नहीं मिल पाता, क्योकि उनमे कुछ गलतिया पहले से ही रह जाते है। लेकिन दोस्तों आपको बता देना चाहता हु की एक सुद्ध रूप से प्रस्तुत किए गए परिकल्पना के माध्यम से पूर्ण सत्य को उद्घाटन करना भी संभव है।
ये अध्ययन और सत्य के बिच की दुरी को काफी हद तक कम कर देता है।
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4. सामाजिक अध्ययन में प्राकृतिक विज्ञान जैसे कुछ चरित्र तो होते है लकिन वही दूसरी तरफ प्राकृतिक विज्ञान के कुछ चरित्रो को यहां प्रयोग करने में काफी सारे दिक्कते भी आती है। जैसे की निष्पक्षता।
सामाजिक विज्ञान की अध्ययन में अध्ययनकारी कभी कभी निष्पक्ष नहीं रह पाता। वहाँ उनका अपना व्यक्तिगत सोच, पक्षपाती भाव इत्यादि का प्रभाव पर सकता है। परिकल्पना वो एक उपाय है जो इस संभावना को काफी हद तक कम कर देता है।
समाज अध्ययन को विज्ञान स्तर में ले जाने की चेस्टा में परिकल्पना एक बहुत ही बड़ा सहायक है।
5. परिकल्पना केंड्रिक अध्ययन के माध्यम से अध्ययनकृत विषय को सारो तरफ से अच्छे से अध्ययन करना संभव है।
उदाहरण: - अगर गरीबी के ऊपर अध्ययन करना है तो गरीबी क्या है ?, किस किस करनवर्ष गरीबी का जन्म होता ? इन उप-विषयो के ऊपर अध्ययन भी जरूरी है।