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Saturday, 16 February 2019

दुनिआ के महान समाजशास्त्री [एक एक करके]

दुनिआ के महान समाजशास्त्री  [एक एक करके]


1. अगस्त कोम्टे: - जब हम समाजशास्त्र की बात करते है तो सबसे पहले जिस समाजशास्त्रीक का स्मरण अपने मनमें आता है वो है अगस्त कोम्टे। अगस्त कोम्टे एक फ्रेंचेस दार्शनिक थे। उनका जनम हुआ था सं 1798 के 19 जनुअरी को फ्रेंच के मोन्तेपिलर में। उनका पूरा नाम था Isidore Marie Auguste François Xavier Comte.

अगस्त कोम्टे को ही समाजशास्त्र का पिता माना जाता है। सं 1839 में मानव समाज को अध्ययन करने के लिए इन्होने ही प्रत्यक्षवाद का जनम दिआ था, जिसने मानव समाज पद्धिति को वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करने का रस्ता खोल दिआ। 

अगस्त कोम्टे के कुछ उल्लेख्यनीय ग्रन्थ: - Positive Philosophy, A programme of scientific work required for the recognization of society, Positive politics इत्यादि।
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2. हरबर्ट स्पेंसर: - एक अत्यंत ही गरीब परिवार में जन्मे हरबर्ट स्पेंसर का जनम हुआ था सं 1820 के 27 अप्रैल को ब्रिटैन के डर्बी शहर में। दोस्तों क्या आप जानते है की हरबर्ट स्पेंसर को समाजशास्त्र का दुवितीय पिता भी कहा जाता है?

इनके एक अति विख्यात सिद्धांतो में से एक है सामाजिक अंगवाद का सिद्धांत इस सिद्धांत में उन्होंने मानव देह और समाज संरचना के बिभिन्न दिशाओ की तुलना की है।

हरबर्ट स्पेंसर के कुछ अति विख्यात ग्रन्थ: - Principles of Sociology (1880), The Man Versus the State (1884), Justice-4 (1891).

Friday, 15 February 2019

कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धांत

कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धांत


दोस्तों हम सभी तो ये जानते है की जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स के सभी सिद्धांत वस्तुजगत को केंद्र करके ही विकशित हुआ है, चाहे वो ऐतिहासिक भौतिकताबाद या फिर मानव समाज परिवर्तन के छे मुख्य स्तर ही क्यों ना हो। 

उनके इन्ही सिद्धांतो में से एक अन्यतम है उनका वर्ग संगर्ष सिद्धांत। उनका ये वस्तुकेन्द्रिक सिद्धांत भी पूर्ण रूप से वस्तुजगत के ऊपर प्रतिष्ठित है

मार्क्स के अनुसार मानव जाती का इतिहास ही श्रेणी या वर्ग संघर्ष का इसिहास है, मानव समाज एक स्तर से दूसरे स्तर तक इसी संघर्ष के माध्यम से आगे बढ़ते है। 

तो फिर चलिए इसको और ज्यादा कठिन बनाये बिना उनके ही दृष्टिकोण से आकर वर्ग संघर्ष सिद्धांत को आलोचना करते है।
कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धांत

वर्ग संघर्ष सिद्धांत : - मार्क्स ने उनके समय की पूंजीवादी व्यबस्था की व्याख्या करते हुए ही इस सिद्धांत को आगे रखा है। 

उनके अनुसार पूंजीवादी व्यबस्था में दो मुख्य वर्ग के लोग होते है। एक होते है बुर्जुआ और दूसरे होते है प्रोलिटेरिएट।

बुर्जुआ जो वर्ग है, वो है समाज के धनी पूंजीपति श्रेणी। इस श्रेणी के पास ही उद्पादन के सारे उपादान मौजूद होते है, जैसे की धन, जमीन और श्रमिक (Land, Labour और Capital)

दूसरी ओर जो प्रोलिटेरिएट वर्ग होते है, वो होते है समाज के श्रमिक श्रेणी।

इनके पास कोई भी क्षमता नहीं रहता। वो केबल अपने जीबन-यापन के लिए पूँजीपतिओ के निचे उनके उद्द्योगो या कर्म प्रतिस्थानो में काम करते है या फिर यु कहे तो धन के बदले अपना श्रम बेचते है।

दोस्तों पूंजीपति या बुर्जुआ और श्रमिक या प्रोलिटरिएट वर्ग के इस कहानी में अचल मौर अब आता है। 

दराचल बात यह है की पूंजपति हमेशा ही अपने लाभ के लिए सोचता है, और इस लाभ को दिन दिन बढ़ाने के लिए वे श्रमिकों की वेतन कम कर देते है या उनसे अधिक समय काम करवाते है।