सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत
दोस्तों दुनिआ के प्रत्येक मानव समाज का मुख्य विशेषता ही है परिवर्तन। ये परिवर्तन तेज गति से भी हो सकता है और धीमी गति से भी हो सकता है, रैखिक प्रक्रिया में भी हो सकता है और चक्रीय प्रक्रिया में भी।
दोस्तों इससे पहले की लेख में हमने जाना था की सामाजिक परिवर्तन का रैखिक सिद्धांत क्या है ? इस लेख में हम जानेंगे की सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत क्या है ? तो चलिए इस प्रश्न के उत्तर ढूंढ़ने के माध्यम से ही इस लेख को सुरु करते है।
सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत क्या है ?
दुनिआ के ज्यादातर समाजो में कुछ पद्धिति या प्रक्रिया ऐसा होता है जो कुछ समय तक समाज में प्रचलित तो रहते है लेकिन समय बीतने के साथ साथ वो पद्धिति भी समाज से लगभग गायब हो जाता है।
दोस्तों ऐसे गायब हो सुके पद्धितिया कुछ समय तक उस समाज से बेर पालके चलते है।
लेकिन उस समय के बीतने बाद देखा जाता है की वो पद्धिति पुनः उस समाज में लौट आते है। दोस्तों ऐसे चक्रीय प्रक्रिया के माध्यम से लौट आए ऐसे सामाजिक परिवर्तन प्रक्रियाओं को ही सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत कहाँ जाता है।
उदाहरण के रूप में लोगो की वेषभूषाओ के क्षेत्र में ये परिवर्तन प्रक्रिया ज्यादातर देखा जाता है। चलिए आपको एक सरल उदाहरण के माध्यम से इसको समझने में मदद करते है।
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भारतीय समाज में वैदिक युग में व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति उसके कर्म के दुवारा निर्धारित किआ जाता था। उस समय के महान शासक विस्वमित्र को अपने कर्मो के कारण क्षत्रिय से ब्राह्मण की मर्यादा प्राप्त हुआ था।
लेकिन दोस्तों समय बीतने के साथ साथ जो कर्म आधारित सामाजिक प्रस्थिति था वो अब जन्म आधारित बंध सामाजिक प्रस्थिति में बदल गया (महाकाव्यिक युग में - रामायण और महाभारत का युग)
भारतीय समाज में ये सिलसिला इस देश की स्वतंत्रता तक चला। स्वतंत्रता के बाद भारतवर्ष में आधुनिकीकरण की गति तेज होने लगा जिसके करणवर्ष लोगो की मानसिकता में भी परिवर्तन आने लगा और ये प्रभाव हमें देखने मिला व्यक्ति की सामाजिक स्थान निर्णयकरण के ऊपर।
अब भारतवर्ष में पुनः वैदिक युग का कर्म आधारित सामाजिक प्रस्थिति निर्णयकरण प्रक्रिया लौट आया है तथा जन्म आधारितकरण का महत्व काफी कम हो गया है।
ये भी चक्रीय परिवर्तन का ही एक अन्यतम उदाहरण है।
चक्रीय प्रक्रिया की विशेषता
1. चक्रीय प्रक्रिया में जो परिवर्तन लौटके वापस आता है, वो सम्पूर्ण रूप से पहले के जैसे नहीं रहता। वो अपने साथ नयापन लाता है।
2. चक्रीय परिवर्तन में ये हम निश्चित नहीं हो सकते की इससे हमेशा भला ही होगा, बिलकुल नहीं। क्योकि सामाजिक परिवर्तन का ये विशेषता ही होता है की इसके दुवारा समाज का उपकार या अपकार दोनों ही हो सकता है।
3. इस प्रक्रिया में पुराने सामाजिक पद्धिति लौट आते है।