Monday, 18 March 2019

सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धांत

सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धांत


दोस्तों सामाजिक परिवर्तन का रेखिक सिद्धांत क्या है ? आपके मनमे एहि प्रश्न है ना, तो चलिए इस प्रश्न का समाधान सूत्र ढूंढ़ने की कोसिस करते है।

इस रैखिक सिद्धांत के अनुसार समाज व्यबस्था का परिवर्तन प्रारंभिक या प्रार्थमिक अवस्था में ही आरम्भ होता है और ये परिवर्तन किसी एक विशेष दिशा में निरंतर चलता ही रहता है अर्थात ये अपना रस्ता कभी भी नहीं बदलता।
सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धांत

ऐसे निरंतर एक ही दिशा में परिवर्तन होते रहने के कारण इसको रेखिक सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है। रेखिक परिवर्तन की संकल्पना बाकिओ से काफी बड़ा होता है और इसी से बाकिओ का भी जनम होता है।

सरल भाषा में कहे तो ये एक सीधा रास्ता है जो अंतहीन रूप से चलता ही रहता है और जो बाकि रास्ते होते है (यानि चक्रीय परिवर्तन) वो सभी इसके शरीर से जन्म लेते है।

उदाहरण के रूप में : - मानव जाती का सोच आदिम स्तरों से आकर आज इस आधुनिक अवस्था में पंहुचा है। मानव के सोच का ये जो विवर्तन है वो निरंतर चलता ही रहा है और ऐसे चलता ही जायेगा। इसको हम रेखिक परिवर्तन कह सकते है।

रेखिक परिवर्तन के ऊपर अगस्त कोम्टे, विलियम रॉबर्ट्सन, हर्बर्ट स्पेंसर और कार्ल मार्क्स जैसे महान समाज दार्शनिको ने बहुत ही गंभीरता से अध्ययन किए थे और कई सारे सिद्धांत भी आगे रखे थे।

इस लेख में अगस्त कोम्टे के सिद्धांत को ही अच्छे से जानने की कोसिस करेंगे।

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अगस्त कोम्टे  के रेखीय सिद्धांत

अगस्त कोम्टे ने सामाजिक परिवर्तन के इस रेखिक प्रक्रिया को मानव जाती के क्रमविकास के माध्यम से व्याख्या किआ है। उन्होंने इस क्रमविकास की प्रक्रिया को तीन मुख्य भागो में बाता है।

चलिए जानते है वो तीन भाग क्या क्या है : -

1. दैविक स्तर : - इस स्तर में मानव जाती की सोच एकदम ही कच्चे अवस्था में थे। इस स्तर में इंसान समझते थे की प्रकृति के सारे घटनाये कोई दैविक या अतिमानवीय शक्ति ही करते है। 

किसी प्राकृतिक घटना को युक्ति से सोच ना पाने कारण उसके अचल रहस्य तक पहुंच पाने में लोग असमर्थ थे।

यौक्तिक चिंता ना कर पाने के कारण लोग दैविक शक्तिओ की पूजा करना, जीव-जन्तुओ की बलि देना इन सभी कार्यो के दुवारा ही अपने आपको संकट से मुक्त करने की कोसिस करते थे।

अगर अगस्त कोम्टे के दृष्टिकोण से देखे तो बोल सकते है की दैविक स्तर मानव जाती की विकाश का प्रारंभिक स्तर है। 


2. अधिभौतिक स्तर : - मानव जाती की विकाश का ये दूसरा स्तर है, यहा मानव का सोच पहले से काफी उन्नत होने लगते है और प्राकृतिक घटनाओ की कारणों को जानने की प्रयास करते है।

इन्ही प्रयासों का एक अन्यतम उदाहरण है आग का संरक्षण।

दोस्तों अगस्त कोम्टे कहते है, मानव अधिभौतिक स्तर में पहले से उन्नत जीवन-यापन करते है लकिन अभीभी वे उस अवस्था में नहीं पहुंचे थे की वो प्राकृतिक घटनाओ का अचल रहस्य उद्घाटन करने में पूर्ण रूप से शक्षम हो जाये।


3. प्रत्यक्षवादी स्तर : - प्रत्यक्षवादी स्तर मानव जाती के अब तक की विकाश का सर्वोच्च स्तर है। यहाँ मानव पूर्ण रूप से यौक्तिक हो जाते है और प्राकृतिक घटनाओ की रहस्य को जानने की प्रयास में सफल हो जाते। 

कोई घटना क्यों होता है, कौन कौन से कारक इसमें प्रभाव विस्तार करता है और ये किस तरह बाकि व्यवस्थाओ को प्रभावित करते है ये सभी इस स्तर पे मानव जानने में शक्षम हो जाते है।

कोम्टे कहते है की प्रत्यक्षवादी स्तर में मानव पहले के दो स्तरों से उन्नत जीवन-यापन करते है। वैज्ञानिक सोच, वैज्ञानिक कार्य ये सभी इस स्तर की मुख्य विशेषताए है।

कोम्टे के अनुसार इसी रेखीय गति से आज तक सामाजिक परिवर्तन संभव हो पाया है।