Thursday, 7 February 2019

सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव

सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव (Samajik Parivartan ka Prabhav)


सामाजिक परिवर्तन एक सार्वजनीन प्रक्रिया है, मानव की बुद्धि या सोच पाने की क्षमता ही इसका मुख्य कारण है। दुनिआ का कोई भी मानव समाज क्यों ना हो वो परिवर्तित होता ही होता है, इसको कोई नहीं रोक सकता।

हां ये बात मानना पड़ेगा की मानव समाज अनुसार इस परिवर्तन प्रक्रिया की गति कम या ज्यादा हो सकता है। जैसे की: - आधुनिक सोच रखने वाले समाज की परिवर्तन गति तेज होती है और दूसरी और रक्षणशील सोच रखने वालो की गति धीमा।

दोस्तों इस लेख में हम जानेंगे की - हम सामाजिक परिवर्तन को कैसे भाप या समझ  सकते है ? ऐसा क्या क्या प्रभाव या लक्षण हमको पता चलता है जब समाज में परिवर्तन आता है ? तो चलिए इस लेख को आरम्भ करते है।
Samajik Parivartan ka Prabhav

सामाजिक परिवर्तन का विशेष प्रभाव (Samajik Parivartan ka Visesh Prabhav)

1. लोगो की सोच में परिवर्तन: - समाज में रहने वाले व्यक्तिओ के सोच में आये हुए परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन का प्रथम लक्षण है। मानव का सोच कभी भी एक जैसा नहीं रहता, समय अनुसार ये बदलता ही रहता है। इसीलिए अगर आपको सामाजिक परिवर्तन को भापना है तो पहले लोगो के सोच या मानसिकता को परखने की कोसिस कीजिए।

उदाहरण: - भारतवर्ष में पहले के समय में लोग जाती प्रथा को समर्थन करते थे लकिन आज उसी जाती प्रथा को लोग एक सामाजिक समस्या मानते है।      


2. सामाजिक संरचना में परिवर्तन: - दोस्तों अगर आप समाजशास्त्र के छात्र या छात्रा हो आपने विख्यात समाज दार्शनिक हर्बर्ट स्पेंसर के सामाजिक अंगबाद सिद्धांत को कभी ना कभी तो पढ़ा होगा।

उस सिद्धांत में उन्होंने कहा है की मानब समाज हमेशा ही बिभिन्न प्रकार के अंशो को लेकर गठन होता है और अगर किसी अंश में कभी कुछ परिवर्तन आता है तो पूरा समाज में ही उसका प्रभाव पड़ता है।

अर्थात जब सामाजिक परिवर्तन होता है तब एक समाज जिन जिन अंशो को लेकर गठित होता है उन सभी में परिवर्तन आता है। उदाहरण: - परिवार, विवाह, धर्म, जाती इत्यादि।

भारतीय समाज के परिवर्तन को आप समझ सकते हो इन चारो संस्थाओ में आये हुए परिवर्तन को भापकर। जैसे की पहले के समय में संयुक्त परिवार व्यबस्था का प्राधान्य लकिन वर्तमान एकल परिवार का प्राधान्य।

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3. सामाजिक सम्बन्धो में परिवर्तन: - तीसरे में आप देख सकते हो सामाजिक सम्बन्धो में आए हुए परिवर्तनों को। उदाहरण के रूप में: - प्राचीन भारतीय सोच के अनुसार विवाह एक स्थाई अनुष्ठान है, जो दो व्यक्ति एक बार विवाह के बंधन में बंध जाते है वो कभी उससे मुक्त नहीं हो सकते, पति-पत्नी का सम्बन्ध सात जन्मो तक होता है।

लकिन दोस्तों आज इसको कोई नहीं मानना चाहता। आधुनिक सोच के अनुसार विवाह एक सामाजिक संधि है, अगर पति-पत्नी इसमें खुश ना हो तो वो इसको तोड़ सकते है।


4. सभ्यता की गति: - सामाजिक परिवर्तन को मापने का चौथा उपाय है सभ्यता की गति। दोस्तों आपतो जानते है की संस्कृति की बाहरी रूप को ही सभ्यता कहा जाता है, जैसे की घर, मशीन इत्यादि। किसी समाज में सभ्यता कितना आगे बढ़ा है या निचे आया है इसको समझके भी आप सामाजिक परिवर्तन को समझ सकते है।


5. कार्य पद्धिति का परिवर्तन: - आज से 1000 साल पहले लोग एक जगह से दूसरे जगह पैदल चलके जाते थे। लकिन दोस्तों मई आपसे अब पूछता हु की कितने लोग 10 किलोमीटर दूर लक्ष तक पहुंचने के लिए आज पैदल चलके जायेंगे?

सायद 100 लोगो में से 2 या 3 ही ऐसे होंगे और वो भी रोज नहीं जायेंगे। आज लोग यातायात, संचार तथा अपने रोज-मर्रा के कार्यो के लिए यन्त्र का व्यबहार करते है।लोगो के कार्य पद्धिति के इस परिवर्तन को मापने के लिए आप बस आज के साथ 10 साल पहले की तुलना करके देखो आपको वो अंतर साफ साफ नजर आएगा।  समाज के कार्य पद्धिति में परिवर्तन भी सामाजिक परिवर्तन का एक अन्यतम प्रभाव है।