उद्यौगिक विवाद
उद्यौगिक समाजशास्त्र के अध्ययन की मुख्य विषयवस्तुओ में से एक अन्यतम है उद्यौगिक विवाद। एक उद्यौग तथा उसके आस-पास के समाज में बिभिन्न प्रकार के लोग रहते है और उन सारे लोगो का अपना अपना स्वार्थ होता है।
लकिन कभी कभी किसी विशेष करणवर्ष जब उनके उस स्वार्थ को पूरा करने के रस्ते में कुछ बाधा आता है तथा कोई व्यक्ति या संगठन उस बाधा का नेतृत्व प्रदान करते है तभी ऐसे विवादों जनम होता है। उद्यौगिक समाज के विशेषताओ से सम्बंधित तथा उसी समाज में ऐसे विवादों का विकाश होने के कारण इसको उद्यौगिक विवाद कहा जाता है।
उदाहरण के रूप में: - किसी व्यक्तिगत कर्म प्रतिष्ठान में बिना कारणवर्ष श्रमिकों को उनके कार्य से निकाल देने के कारण मालिक पक्ष और श्रमिक पक्षो के बिच ऐसे विवादों का जनम हो सकता है।
लकिन कभी कभी किसी विशेष करणवर्ष जब उनके उस स्वार्थ को पूरा करने के रस्ते में कुछ बाधा आता है तथा कोई व्यक्ति या संगठन उस बाधा का नेतृत्व प्रदान करते है तभी ऐसे विवादों जनम होता है। उद्यौगिक समाज के विशेषताओ से सम्बंधित तथा उसी समाज में ऐसे विवादों का विकाश होने के कारण इसको उद्यौगिक विवाद कहा जाता है।
उदाहरण के रूप में: - किसी व्यक्तिगत कर्म प्रतिष्ठान में बिना कारणवर्ष श्रमिकों को उनके कार्य से निकाल देने के कारण मालिक पक्ष और श्रमिक पक्षो के बिच ऐसे विवादों का जनम हो सकता है।
उद्यौगिक समाज में बिभिन्न समय पर विवादों का जनम होता रहता है। तो चलिए इन विवादों के कुछ सबसे ज्यादा उल्लेखनीय कारणो को जानने की कोसिस करते है।
उद्यौगिक विवाद के कारण
1. निम्न मान का मजदूरी: - उद्यौगिक समाज में पूँजीपतिओ का प्राधान्य सबसे ज्यादा होता है। पूंजीपति हमेशा ही चाहता है की कैसे श्रमिकों को कम मूल्य में काम करवाके अधिक मुनाफा कमाया जाये। इसीलिए वे श्रमिकों को कम से कम मजदूरी प्रदान करते है।और इसीलिए दूसरी ओर श्रमिकों के जीवन-यापन का मान भी इससे दिन व दिन निम्न होता जाता है। लकिन दोस्तों ये तो इंसान का चरित्र ही होता है की वो हमेशा ही अच्छे से रहना चाहता है।
इसके कारण श्रमिक और मालिक पक्ष के बिच मतभेद दिन व दिन साफ हो जाता है और आखिर में एक समय ऐसा आता है की श्रमिक मालिक पक्ष के विरोद्ध विवादों में जुड़ जाता है। आधुनिक उद्यौगिक समाज में विवाद होने के बिभिन्न कारणो में से ये पहला कारण है।