Saturday, 4 May 2019

संचार या कम्युनिकेशन क्या है ?


संचार क्या है ?


समाजशास्त्रीक परिभाषाओ में से एक और अन्यतम है 'संचार या कम्युनिकेशन', तो फिर क्या होता है ये संचारआज हम इसी विषय के ऊपर गंभीरता से चर्चा करेंगे। 

क्या आप इस चर्चा में अंश ग्रहण करने हेतु इच्छुक हो? आशा करता हु की इस चर्चा के माध्यम से इस विषय के ऊपर आपको काफी मदद होगी।  

तो चलिए सबसे पहले इस प्रश्न के उत्तर ढूंढ़ने की कोसिस करते है।

दोस्तों हम इंसान एक सामाजिक प्राणी है। इंसानो के समाज में रहकर ही हम अपना जीवन व्यतीत करते है, इसके कारण हम बिभिन्न उद्देश्यों को केंद्र करके बिभिन्न लोगो से बात चित करते है, अलाप-आलोचनाए करते है। 

दोस्तों हम इंसान इसीलिए ये सब करते है ताकि हम अपने बिभिन्न उद्देश्यों को पूरा कर पाए।

इसीलिए कम्युनिकेशन या संचार वो उपाय होता है जिसके जरिए हम अन्य इंसानो के साथ अपने अनुभवों को बाटकर अपने बिभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने की कोसिस करते है। 

ये उद्देश्य कुछ भी हो सकता है, चाहे वो कितना भी छोटा या फिर कितना भी बड़ा क्यों ना हो।

लोगो के साथ बात-चित करना, लिखित सन्देश भेजना, अपने हाट या आखो से किसी को इशारे करना ये सभी बिभिन्न प्रकार के संचार के उदहारण होते है।

बहुत सारे समाजशास्त्रीक ये भी कहते है की हम इंसान खुद के साथ भी संचार करते है, जिसको उन लोगो ने नाम दिआ है 'आंत-संचार' (Intra-Communication), हालांकि इसके बारे में हम इसके प्रकारो के अध्ययन में अच्छे से जानेंगे।      
संचार या कम्युनिकेशन क्या है ?

Wednesday, 24 April 2019

परिकल्पना क्या है? विशेषता, सामाजिक प्रगति में भूमिका


परिकल्पना क्या है?

दोस्तों आज हम एक नए मुद्दे के ऊपर बात करेंगे, जो है 'परिकल्पना'. दोस्तों सबसे पहले जानने की कोसिस करते है की ये है क्या?

ये जो शब्द है 'परिकल्पना', ये दो और अन्य शब्दो के मेल से बना हुआ एक शब्द है। इनमे पहला है 'परि' और दूसरा है 'कल्पना'.

परि का अर्थ है 'किसी भी कार्य को करने से पहले लिए हुआ पदक्षेप' और कल्पना का अर्थ है 'कल्पना' करना।

अर्थात इसका अर्थ है किसी भी कार्य को करने से पहले किआ गया एक कल्पना, जो उस कार्य की गति, प्रकृति, पद्धिति और फल क्या होगा और कैसा होगा इसके ऊपर निर्भरशील होता है। 

लेकिन हमें ये याद रखना भी आवश्यक है की परिकल्पना और वास्तविकता में काफी अंतर होता है।

ज्यादातर समय में परिकल्पित कार्य की गति और प्रकति को बदलना पड़ता है, हालाकि वैज्ञानिक पद्धिति के प्रयोग से बनाया हुआ ज्यादातर परिकल्पनाए बाद में ज्यादा गलत साबित नहीं होता।

खैर जो भी अब इसके कुछ विशेषताओ को जानते है चलिए।  
परिकल्पना क्या है,  विशेषता, सामाजिक प्रगति में भूमिका

Sunday, 14 April 2019

भारतीय संबिधान और सामाजिक समता


भारतीय संबिधान और सामाजिक समता


आप एहि जानना चाहते हो ना की भारतीय संबिधान किस तरह इस देश में सामाजिक समता प्रतिष्ठा करने के ऊपर अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। 

तो चलिए आज हम इसी विषय के ऊपर चर्चा करते है।

सबसे पहले आपको बता देना चाहता हु की भारतीय संबिधान में स्थित मौलिक अधिकारे ही इस विषय का मूल केंद्र है।

क्योकि इन्ही मौलिक अधिकारों के जरिए यहाँ हर एक जाति, धर्म, वर्ण, भाषा, सामाजिक श्रेणी, लिंग के लोगो को एक समान समाजिक स्थान प्राप्त हो रहा है।

अब आईए इसको विस्तार से जानने की प्रयास करते है : -
भारतीय संबिधान और सामाजिक समता

1. समानता का अधिकार के जरिए : - भारतीय संबिधान की 14 नंबर अनुच्छेद से 18 नंबर अनुच्छेद तक समानता की अधिकार के बारे में व्याख्या किआ गया है।

14 नंबर अनुच्छेद में उल्लेख है की भारत के प्रत्येक नागरिक को एक समान क़ानूनी अधिकार प्रदान किआ गया है।

चाहे वो किसी भी जाति, धर्म, वर्ण, भाषा, और इलाके से क्यों ना जुड़े हुए हो, लेकिन कोई भी इसको अस्वीकार नहीं कर सकता।

16 नंबर अनुच्छेद के जरिए प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक समान सरकारी नौकरी करने का अधिकार प्रदान किआ गया है और उसी तरह 17 और 18 नंबर अनुच्छेद के जरिए अस्पृश्यता को वर्जन और शिक्षा की समान अधिकार के बारे में उल्लेख किआ गया है।

अगर कोई व्यक्ति इन नियमो को मानने से अस्वीकार करता है या इसके खिलाफ कोई कार्य करता है तो उसको भारत के ही कानून व्यबस्था कड़ी से कड़ी दंड प्रदान करेगा।

Wednesday, 10 April 2019

अंधविश्वास क्या है?, चरित्र, प्रभाव, समाधान

अंधविश्वास क्या है?

अंधविश्वास क्या है? कुछ समाज या देशो में ये आज भी एक बहुत बड़ा प्रश् चिन्ह है।

हालाकि आज दुनिआ अधुनिकताबाद को पार करके उत्तर-आधुनिक स्तर पे सुका है लेकिन दुनिआ में आज भी कुछ ऐसे समाज है जिसमे अंधविश्वास सरदर्द बनके बैठा हुआ है।

क्या आप जानना चाहते हो की ये दराचल है क्या ?

तो चलिए अंधविश्वास की मूल परिभाषा को जान लेते है।

दराचल 'अंधविश्वास' भी एक बिस्वास ही होता है जो किसी यौक्तिक सोच के ऊपर प्रतिष्ठित नहीं होता, मानब समाज में कुछ लोग इन अयौक्तिक सोचो को केंद्र करके बिविन्न प्रकार के आचरण करते है।

समाज के इन्ही लोगो को अन्धबिस्वासी लोग कहा जाता है।
अंधबिस्वास क्या है?, चरित्र, प्रभाव, समाधान
ये एक अति बितर्कपूर्ण अबधारणा है, लेकिन क्या आप जानते है की दुनिआ के 80 % से भी ज्यादा व्यक्ति अन्धबिस्वासी होते है?

आप सोच रहे होंगे की ये कैसे संभव है?

चलिए तो फिर मई ही बता देता हूँ। दराचल बात यह है की - ये जो अबधारणा है 'अंधविश्वास' इसका अर्थ ही है बिना युक्ति के किसी बिस्वास को ग्रहण करना और उसके मुताबित आचरण करना।

अर्थात आधुनिक समाज के मुताबित अगर कोई सोच यौक्तिक आधार पर प्रतिष्ठित हो, लेकिन उसको मानके चलने वाले व्यक्ति अगर उसकी यौक्तिक गंभीरता ना समझके उसका वाहन करे तो फिर तो वो उस व्यक्ति के क्षेत्र में अंधविश्वास ही हुआ ना।

हालाकि आधुनिक समाज इन सभी बातो के ऊपर ज्यादा ध्यान नहीं देते। 

क्योकि युक्ति के ऊपर प्रतिष्ठित कोई सोच अगर कोई व्यक्ति बिना जाने भी मानके चलते है तो भी वो किसी का अपकार नहीं करते।

आधुनिक समाज के लिए अंधविश्वास वो होता है जो आधुनिक यौक्तिक सोच को अपकार करती है तथा इसके साथ समाज, समाज में रहने व्यक्ति की हानि करता है।

जैसे की भुत-प्रेत के ऊपर बिस्वास करके तंत्र-मंत्र का जाप करना तथा जीब-जन्तुओ की बलि देना इत्यादि।

एक उदाहरण देता हूँ जरा सोचके देखिएगा - हर साल जून के महीने में असम राज्य में स्थित कामाख्या देवी की मंदिर के आस पास भक्तो की भीड़ उमड़ पड़ती है।

देवी के भक्तगण एक सोच लेके वहाँ जमा होते है।  

ये लोग कामाख्या मंदिर के किसी रहस्य की बात करते है जिसका विज्ञान के पास कोई भी प्रमाण नहीं है, अर्थातविज्ञान के लिए इन लोगो की सोच एक अंधविश्वास से ज्यादा और कुछ भी नहीं।

लेकिन क्या आज तक किसी ने इस सोच को मिटाने की कोसिस की है ?

में जितना जनता हूँ नहीं किआ है।

लेकिन क्यों ?

दराचल बात यह है की यौक्तिक समाज हमेशा ही केबल उन सोचो को ही अंधविश्वास मानके चलते है तथा मिटाने की कोसिस करते है, जो समाज का अपकार करता है।

उन सोचो को नहीं करता जिसका कोई ज्यादा गहरा हानिकारक प्रभाव नहीं होता या फिर कहे तो कम समय के लिए प्रभाव होता है।