परिकल्पना क्या है?
दोस्तों आज हम एक नए मुद्दे के ऊपर बात करेंगे, जो है 'परिकल्पना'. दोस्तों सबसे पहले जानने की कोसिस करते है की ये है क्या?
ये जो शब्द है 'परिकल्पना', ये दो और अन्य शब्दो के मेल से बना हुआ एक शब्द है। इनमे पहला है 'परि' और दूसरा है 'कल्पना'.
परि का अर्थ है 'किसी भी कार्य को करने से पहले लिए हुआ पदक्षेप' और कल्पना का अर्थ है 'कल्पना' करना।
अर्थात इसका अर्थ है किसी भी कार्य को करने से पहले किआ गया एक कल्पना, जो उस कार्य की गति, प्रकृति, पद्धिति और फल क्या होगा और कैसा होगा इसके ऊपर निर्भरशील होता है।
लेकिन हमें ये याद रखना भी आवश्यक है की परिकल्पना और वास्तविकता में काफी अंतर होता है।
ज्यादातर समय में परिकल्पित कार्य की गति और प्रकति को बदलना पड़ता है, हालाकि वैज्ञानिक पद्धिति के प्रयोग से बनाया हुआ ज्यादातर परिकल्पनाए बाद में ज्यादा गलत साबित नहीं होता।
खैर जो भी अब इसके कुछ विशेषताओ को जानते है चलिए।
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परिकल्पना की विशेषता
अब आईए जानते है इसके कुछ अति महत्वपूर्ण विशेषताओ के बारे में: -
1. किसी कार्य की पूर्व अवस्था :
- परिकल्पना हमेशा ही किसी कार्य की पूर्व अवस्था होता है, जो सत्य के ऊपर प्रतिष्ठित नहीं होता।
ये एक प्रकल्प होता है, जो किसी कार्य को किस तरीके से किआ जायेगा, कौन कौन सी पद्धिति का प्रयोग किआ जायेगा और उससे क्या क्या फल प्राप्त होगा इत्यादि प्रश्नो को केंद्र करके बनाया जाता है।
2. स्थिर या अस्थिर प्रकृति :
- परिकल्पना स्थिर और अस्थिर दोनों प्रकृति का हो सकता है। दोस्तों ज्यादातर परिकल्पनाएं अस्थिर प्रकृति के ही होते है।
क्योकि उसको प्रयोग करते समय बिभिन्न प्रकार के बाधाओं के कारण उसको बिच बिच में संशोधित करना पडता है।
हालाकि वैज्ञानिक पद्धिति के प्रयोग से इस अस्थिर प्रकृति की मात्रा को काफी हद तक कम किआ जा सकता है।
3. कार्य को विशेष रस्ता प्रदान: -
ये हमेशा ही किसी कार्य को एक विशेष गति और रस्ता प्रदान करता है। अगर परिकल्पना प्रस्तुत ना किआ जाये तो उस कार्य के जरिए विशेष लक्ष पहुंचने में अधिक से अधिक दिक्कत हो सकती है।
सही गति और रस्ता प्रदान के जरिए किसी कार्यो को सही लक्ष प्राप्त करवाना इसका अन्यतम विशेषता है।
4. सही या गलत फल की प्राप्ति :
- किसी परिकल्पना के जरिए किए गए कार्य से जो फल प्राप्त होता है वो व्यक्ति के कल्पनाकृत 'आदर्शगत फल' जैसा भी हो सकता है या 'आदर्शगत फल' जैसा नहीं भी हो सकता है।
दराचल जो परिकल्पनाएं अधिक वैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत किआ जाता है उसका फल 'आदर्शगत फल' जैसा होने का मौका ज्यादा होता है वजाए अवैज्ञानिक तरीको के व्यबहार के जरिए प्रस्तुत किए गए की तुलना में।
5. उद्देश्य केंड्रिक :
- ये हमेशा ही किसी विशेष उद्देश्य को केंद्र करके विकशित होता है और उसी को पूरा करने के लिए कार्य पद्धिति चुनता है।
सामाजिक प्रगति में भूमिका
मानव समाज की प्रगति में परिकल्पना कुछ अति महत्वपूर्ण भूमिकाये पालन करती है। आईए अब इनको जानने की कोसिस करते है : -
सबसे पहले हम हामारे भारत देश को ही उदाहरण के रूप में लेकर आलोचना करते है चलिए।
भारतवर्ष में सं 1951 से देश की प्रगति के लिए पांच वर्षीय परिकल्पनाएं प्रस्तुत की जाती है। इन सबके जरिए देश में शिक्षा की प्रगति, गरीबी को ख़तम करना, स्वास्थ सेवा की उन्नति करना इत्यादि कार्य किआ जाता है।
दोस्तों इन परिकल्पनाओं का ही आज ये फल है जहा हामारा भारत देश आज शिक्षा, स्वस्थ, यातायात, संचार इत्यादि बिभिन्न दिशाओ में बहुत आगे निकल गए है।
हम ये नहीं कहते की इन सभी समस्याओ को समाधान करने में ये देश पूर्ण रूप से सफल हो गया है लेकिन ये कह सकते है की इन्ही परिकल्पनाओं के वजह से हामारा ये देश आज काफी आगे निकल गया है।
दूसरी तरफ अगर आप ध्यान से देखोगे तो परिकल्पनाओं के जरिए ही किसी कार्य को कम खर्ष में ज्यादा अच्छे तरीके से कर पाना संभव हो पाता है लेकिन अगर हम बिना इसके कोई कार्य करने की कोसिस करेंगे तो हमें ना अच्छे फल की प्राप्ति होगी और ना ही धन की अपव्यय को हम रोक पाएंगे।