संस्कृति क्या है
(Sanskriti kya hai)
संस्कृति क्या है ? ये पूछने से अच्छा है की ये पूछा जाये की संस्कृति क्या नहीं है? दराचल ये वो हर एक चीज़ है जो हम सोचते है और जो हम करते है।
सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक और रात को सोने से लेकर सुबह उठने तक वो हर एक चीज़ संस्कृति के अंतर्गत है।
सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक और रात को सोने से लेकर सुबह उठने तक वो हर एक चीज़ संस्कृति के अंतर्गत है।
अगर हम सरल भाषा में कहे तो बोल सकते है , की संस्कृति वो उपादान है जो हमारे भाषा, कला, नैतिकता, खान-पान, व्यबहार, नाच-गाना, आदर्श, पहनावा इत्यादि में छिपा हुआ होता है।
ये उपादान दराचल अदृश्य होता है, या फिर यु कहे तो ये एक प्रकार की सोच है जो भाषा, कला, नैतिकता, खान-पान, व्यबहार, नाच-गाना, आदर्श, पहनावा, बनावट इत्यादि के माध्यम से प्रकाशित होता है।
ये उपादान दराचल अदृश्य होता है, या फिर यु कहे तो ये एक प्रकार की सोच है जो भाषा, कला, नैतिकता, खान-पान, व्यबहार, नाच-गाना, आदर्श, पहनावा, बनावट इत्यादि के माध्यम से प्रकाशित होता है।
ये अदृश्य उपादान ही दुनिआ की बिविन्न संस्कृतिओ को अलग अलग करने का मूल कारन है।
कुछ लोग संस्कृति और सभ्यता की परिभाषा एक मान कर ये गलती तो करते है; की वो लोग पहनावा, बनावट, खान-पान, नाच-गाना इत्यादि को भी संस्कृति के अंतर्गत करते है। लकिन ये सत्य नहीं है।
कुछ लोग संस्कृति और सभ्यता की परिभाषा एक मान कर ये गलती तो करते है; की वो लोग पहनावा, बनावट, खान-पान, नाच-गाना इत्यादि को भी संस्कृति के अंतर्गत करते है। लकिन ये सत्य नहीं है।
संस्कृति और सभ्यता की परिभाषा दोनों ही अलग अलग है। तो चलिए इस दुरी को जानने के लिए संस्कृति के प्रकार को पहले जान लेते है।
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संस्कृति के प्रकार (Sanskriti ke Prakar)
संस्कृति का दराचल दो मूल प्रकार है। एक है अ-भौतिक और दूसरा है भौतिक। इसके अ-भौतिक रूप को ही मूल माना जाता है।
अ-भौतिक संस्कृति ही दूसरे भौतिक रूप की सृस्टि का मूल कारन है। अ-भौतिक संस्कृति का मूल उपादान है व्यक्ति की सोच। इसी सोच से दूसरा प्रकार विकशित होता है।
अ-भौतिक संस्कृति ही दूसरे भौतिक रूप की सृस्टि का मूल कारन है। अ-भौतिक संस्कृति का मूल उपादान है व्यक्ति की सोच। इसी सोच से दूसरा प्रकार विकशित होता है।
उदाहरण के रूप में ले सकते है एक मोटरसाइकिल को। मोटरसाइकिल एक भौतिक संस्कृति का उदहारण है लकिन इसको बनाने में जो कौसल, पद्धिति या सोच का प्रयोग किआ जाता है वो सब अभौतिक संस्कृति का उपादान है।
दुनिआ के बिविन्न संस्कृतिओ के बिच जो दुरी है उसको बनाये रखने में जो संस्कृति सहायता करती है वो है अभौतिक संस्कृति।
कुछ समाज दार्शनिक संस्कृति को दो भागो में बिभाजित करने का भी विरोध करते है। उनके मुताबिट इसका सिर्फ एक ही रूप है जो है इसका अभौतिक रूप।
भौतिक रूप को ये दार्शनिक संस्कृति के बदले सभ्यता बोलने में ज्यादा यकीन रखते है। सायद आपको सभ्यता क्या है वो भी समझ में आ गया होगा।
संस्कृति का महत्व (Sanskriti Ka Mahatva)
1. सबसे पहले तो कोई भी समाज संस्कृति से मुक्त नहीं हो सकती। दुनिआ का कोई भी समाज हो, चाहे वो छोटा हो या फिर बड़ा संस्कृति किसी का भी पीछा नहीं छोड़ती।
2. संस्कृति ही व्यक्ति को जीने का महत्वा देती है अगर एहि नहीं होगी तो इंसान जीबित ही नहीं रहेंगे। या फिर यु कहे तो इंसान और जानवरो के का जो अंतर वो मानब समाज की संस्कृति के दुवारा ही सम्भव हो पाता है।
3. मानब समाज का बिकाश या प्रगति हर एक चीज़ संस्कृति के दुवारा ही संभव हो पाटा है।
संस्कृति और सभ्यता के बिच का अंतर (Difference Between Sabhyata and Sanskriti in Hindi)
1. सबसे पहले तो संस्कृति का जन्म होता है और बाद में होता है उसकी प्रकाशित रूप सभ्यता का। अर्थात संस्कृति सभ्यता का अप्रकाशित रूप होता है और सभ्यता संस्कृति की प्रकाशित रूप होती है।
2. किसी भी संस्कृति को छुया नहीं जा सकता। व्यक्ति केबल इसको अनुभव ही कर सकते है।
जैसे की किसी मोटरसाइकिल बनाने की शैली को हम केबल अनुभव ही कर सकते है।
लकिन इसके बिपरीत सभ्यता को व्यक्ति छू सकते है और देख भी सकते है। जैसे की मोटरसाइकिल को हम छू सकते है तथा चला भी सकते है।
लकिन इसके बिपरीत सभ्यता को व्यक्ति छू सकते है और देख भी सकते है। जैसे की मोटरसाइकिल को हम छू सकते है तथा चला भी सकते है।
3. दुनिआ में सभ्यता का बिकाश या प्रसार ज्यादा तेजी से होता है लकिन जिस सभ्यता आगे बढ़ता है उस तरह संस्कृति आगे नहीं बढ़ सकती। संस्कृति के बिकाश के लिए बहुत ही ज्यादा समय की प्रयोजन होता है।