सामाजिक परिवर्तन
(Samajik Parivartan)
सामाजिक परिवर्तन एक स्वभाबिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मानब समाज एक स्तर से दूसरे स्तर की ओर गति करता है।
अर्थात इस प्रक्रिया के जरिए समाज में प्रचलित जो पुराने पद्धिति है उसका पतन होता है और उसके जगह पर नए पद्धिति का बिकाश होता है। और वो नया पद्धिति ही पुरे व्यबस्था को परिचालित करता है।
अर्थात इस प्रक्रिया के जरिए समाज में प्रचलित जो पुराने पद्धिति है उसका पतन होता है और उसके जगह पर नए पद्धिति का बिकाश होता है। और वो नया पद्धिति ही पुरे व्यबस्था को परिचालित करता है।
अगर हम सरल भाषा में कहे तो बोल सकते है की ये एक ऐसा प्रक्रिआ है जिसके माध्यम से किसी समाज में प्रचलित रीती-निति, आदर्श, सोच,जीबन जीने का तरीका, भाषा, संस्कृति इत्यादि में बदलाव आता है।
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1. सार्वभौमिक प्रक्रिया: -
दुनिआ में ऐसा कोई भी समाज नहीं जो आज तक परिवर्तित नहीं हुआ है। सामाजिक परिवर्तन एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। ये व्यक्ति के इच्छा से परे है।
क्योकि दुनिआ का हर एक समाज कम या ज्यादा रूप से परिवर्तित होता ही है। उदाहरण के रूप में आप भारतीय समाज को ही अध्ययन कर सकते हो।
आज से 50 साल पहले का जो भारतीय समाज है वो आज के समाज से काफी अलग है। 50 साल पहले भारत में जाती व्यबस्था का प्राधान्य बहुत ज्यादा था लकिन आज जाती व्यबस्था लगभग गुरुत्वहीन सा हो सुका है।
क्योकि दुनिआ का हर एक समाज कम या ज्यादा रूप से परिवर्तित होता ही है। उदाहरण के रूप में आप भारतीय समाज को ही अध्ययन कर सकते हो।
आज से 50 साल पहले का जो भारतीय समाज है वो आज के समाज से काफी अलग है। 50 साल पहले भारत में जाती व्यबस्था का प्राधान्य बहुत ज्यादा था लकिन आज जाती व्यबस्था लगभग गुरुत्वहीन सा हो सुका है।
2. अच्छा और बुरा प्रभाव: -
सामाजिक परिवर्तन केबल अच्छे दिशा में ही हो ये जरूरी नहीं, कभी कभी ये मानब समाज को बुरे दिशा में ले जाता है।
जैसे की आज जो मुक्त रूप से ड्रग्स और शराब का व्यबहार होता है, वो आज से 50 साल पहले की समय में ऐसे नहीं होता था।
जैसे की आज जो मुक्त रूप से ड्रग्स और शराब का व्यबहार होता है, वो आज से 50 साल पहले की समय में ऐसे नहीं होता था।
3. समाज व्यबस्था में परिवर्तन: - इसके के जरिए प्रचलित समाज व्यबस्था का पतन होता है और उसकी जगह लेता है नया व्यबस्था। उदाहरण : - राजनैतिक क्षेत्र में राजतन्त्र का पतन होक गणतंत्र का विकाश होना।
4. व्यक्ति की सोच में बदलाव: -
सायद हमें ये सबसे ऊपर लिखना चाहिए था क्योकि जब सामाजिक परिवर्तन होता है तब सबसे पहले व्यक्ति की सोच में परिवर्तन आता है।
अचल में सोच में हुए बदलाब के बिना समाज कभी भी एक स्तर से दूसरे स्तर तक नहीं जा सकता है। व्यक्ति का सोच पहले बदलता है उसके वाद बदलता है समाज।
अचल में सोच में हुए बदलाब के बिना समाज कभी भी एक स्तर से दूसरे स्तर तक नहीं जा सकता है। व्यक्ति का सोच पहले बदलता है उसके वाद बदलता है समाज।
5. धीमा गति: -
ये प्रक्रिया बहुत ही धीमा होता है। इसकी गति इतनी कम होती है की एक या दो महीनो की अंतर में आपको सामाजिक परिवर्तन नजर ही नहीं आएगी।
अगर इसको आप मापना चाहे तो 10 साल के अंतर की जो दुरी है उसको मापने से ये परिवर्तन आपको साफ साफ नजर आएगी।
अगर इसको आप मापना चाहे तो 10 साल के अंतर की जो दुरी है उसको मापने से ये परिवर्तन आपको साफ साफ नजर आएगी।
6. एक दूसरे के साथ सम्बन्ध्युक्त : - सामाजिक परिवर्तन हमेशा ही एक दूसरे के साथ सम्बन्ध्युक्त होता है। समाज के एक दिशा में आए हुए परिवर्तन दूसरे दिशा में प्रभाव विस्तार कर सकता है।
उदाहरण : - फ्रेंच रेवोलुशन के बाद यूरोप के राजनैतिक क्षेत्र में आए परिवर्तन के दुवारा वहाँ के समाज व्यबस्था की बिभिन्न दिशा जैसे की शिक्षा, धर्म, अर्थनीति इत्यादि बिभिन्न क्षेत्र में परिवर्तन आए थे।