समाजवाद क्या है? (Samajwad Kya Hai)
समाजवाद एक अर्थ-सामाजिक पद्धिति है। इस पद्धिति में किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत लाभ को ध्यान न देकर सामाजिक लाभ के ऊपर ध्यान दिआ जाता है और उसी के मुताबित कार्य किआ जाता है।
ऐसे पद्धिति में व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार को राष्ट्र दुवारा नियंत्रित किआ जाता है तथा राष्ट्र की संपत्ति को समाज के कल्याण में व्यबहार किआ जाता है।
समाजवाद हमेशा ही समाज के व्यक्तिओ के बिच समान अधिकार में बिस्वास करता है।
ऐसे पद्धिति में व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार को राष्ट्र दुवारा नियंत्रित किआ जाता है तथा राष्ट्र की संपत्ति को समाज के कल्याण में व्यबहार किआ जाता है।
समाजवाद हमेशा ही समाज के व्यक्तिओ के बिच समान अधिकार में बिस्वास करता है।
सं 1991 से पहले बिस्व में समाजवाद का प्राधान्य बहुत ही ज्यादा था।
क्योकि समाजवादी व्यबस्था को नेतृत्व देने वाले 'सोवियत संघराष्ट्र' उस समय बिस्व में अपना दबदबा कायम करने में शक्षम थे।
सं 1991 में सोवियत संघराष्ट्र का पतन होने के बाद बिस्व के लगभग सभी राष्ट्रों में से समाजवादी आदर्शो का अंत हो गया। आज पुरे दुनिआ का लगभग 95% राष्ट्र पूंजीवादी आदर्श से ही चल रहा है।
क्योकि समाजवादी व्यबस्था को नेतृत्व देने वाले 'सोवियत संघराष्ट्र' उस समय बिस्व में अपना दबदबा कायम करने में शक्षम थे।
सं 1991 में सोवियत संघराष्ट्र का पतन होने के बाद बिस्व के लगभग सभी राष्ट्रों में से समाजवादी आदर्शो का अंत हो गया। आज पुरे दुनिआ का लगभग 95% राष्ट्र पूंजीवादी आदर्श से ही चल रहा है।
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समाजवाद का मूल चरित्र (Samajwad Ka Mul Charitra)
1. समान अधिकार के ऊपर प्राधान्य: - समाजवादी समाज में किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकार को प्राधान्य नहीं दिआ जाता।
ऐसे व्यबस्था में साम्य अधिकार दुवारा समाज की हर एक स्तर के व्यक्ति के कल्याण करने के ऊपर ध्यान दिआ जाता है। उच्च-नीच का गुरुत्व यहा काफी कम होता है।
ऐसे व्यबस्था में साम्य अधिकार दुवारा समाज की हर एक स्तर के व्यक्ति के कल्याण करने के ऊपर ध्यान दिआ जाता है। उच्च-नीच का गुरुत्व यहा काफी कम होता है।
2. व्यक्तिगत संपत्ति के ऊपर नियंत्रण: - समाजवादी व्यबस्था में व्यक्ति के व्यक्तिगत संपत्ति के ऊपर राष्ट्र अपना नियंत्रण रखता है।
यहां व्यक्तिगत संपत्ति को कभी भी इतना ज्यादा नहीं बढ़ने दिआ जाता की वो राष्ट्रों नियंत्रण करने की क्षमता प्राप्त करे।
यहां व्यक्तिगत संपत्ति को कभी भी इतना ज्यादा नहीं बढ़ने दिआ जाता की वो राष्ट्रों नियंत्रण करने की क्षमता प्राप्त करे।
3. राष्ट्र दुवारा संपत्ति का व्यबहार: - समाजवाद में देश का जितना भी संपत्ति होता है वो सब सरकार दुवारा व्यबहार किआ जाता है। इसमें उद्पादन, बितरण, उपभोग इत्यादि का नतृत्व सरकार ही लेते है।
4. सामाजिक कल्याण का महत्व: - समाजवादी व्यबस्था में राष्ट्र दुवारा जितने भी उद्पादन किए जाते है, उनमे से ज्यादातर भाग देश की कल्याण के लिए ही व्यबहार किए जाते है। बाकि जो बचता है वही राष्ट्र की लाभ के लिए व्यापार में लगाया जाता है।
5. निर्यात या एक्सपोर्ट के ऊपर प्राधान्य: - देश की अर्थनीति की उन्नति के लिए इस व्यबस्था में सरकार उद्पादन की निर्यात या एक्सपोर्ट के ऊपर ज्यादा ध्यान देते है। लकिन बाहरी देशो से सामग्री की आमदनी के ऊपर इतना ध्यान नहीं दिआ जाता।