Tuesday, 1 January 2019

पूंजीवादी अर्थव्यबस्था क्या है ? (Punjiwadi Arthvyavastha Kya Hai)

पूंजीवादी अर्थव्यबस्था क्या है ? (Punjiwadi Arthvyavastha Kya Hai)

दोस्तों क्या आपको ज्ञात है की दुनिआ में आज जितने भी समाज या राष्ट्र व्यबस्था मौजूद है उन सभी में केवल दो मुख्य अर्थ-सामाजिक व्यबस्था का प्राधान्य ही सबसे ज्यादा है? इन दो व्यबस्थाओं में से एक है समाजवाद और दूसरा है पूंजीवाद। 

सं 1991 से पहले दुनिआ के बहुत सारे देश समाजवादी नीतिओ के दुवारा अपने राष्ट्र की अर्थ-सामाजिक व्यबस्था को परिचालित करते थे। 

लकिन दोस्तों सं 1991 में पूर्ब 'सोवियत संघराष्ट्र' के पतन होने के बाद ये सारे देश समाजवादी नीतिओ को छोड़कर पूंजीवाद (punjivadi arthvyavstha in hindi) की ओर अग्रचर होने लगे।

[दोस्तों सोवियत संघराष्ट्र एक ऐसे देश थे जिन्होंने सं 1917 से सं 1991 तक दुनिआ में समाजवादी भाव-आदर्शो को विस्तारित करने हेतु अपना नेतृत्व लिआ था 

रुसी रेवोलुशन के जरिए ही सं 1917 में समाजवाद को रूस के राजनैतिक और आर्थिक क्षेत्र में प्रतिष्ठित किआ गया था। 

बाद में एहि आदर्श दुनिआ के अन्य देशो में फैल गया, जैसे की चीन, क्यूबा, रोमानिया इत्यादि]

बेहद जरूरी बात जान ले : -

सायद आप सभी जानते होंगे की आदम स्मिथ को अर्थनीति विज्ञानं का पिता माना जाता है, दोस्तों क्या साथ में आप ये भी जानते हो पूंजीवादी अर्थ-व्यबस्था की विकाश में इस महान पंडित का बहुत बड़ा योगदान है। 

उनके ज्यादातर रचनाओं में मुक्त बाजार व्यबस्था का प्राधान्य देखने मिलता है।       
पूंजीवादी अर्थव्यबस्था क्या है, Punjiwadi Arthvyavastha Kya Hai

आज दुनिआ का लगभग 95% प्रतिशत राष्ट्रों की अर्थ-सामाजिक व्यबस्था का मूल आदर्श पूंजीवाद ही है।लकिन दोस्तों क्या आप जानना नहीं चाहोगे की ये पूंजीवाद दराचल है क्या?  

अगर हा, तो ये लेख आपके लिए जरूर सहायक होगी। तो चलिए सबसे पहले पूंजीवादी अर्थव्यबस्था क्या है जान लेते है: -

"पूंजीवाद एक ऐसा अर्थव्यबस्था है जिसमे राष्ट्र की संपत्ति को सरकार दुवारा नियंत्रित नहीं किआ जाता, राष्ट्र के संपत्ति को इस व्यबस्था में धनी व्यक्ति अथवा पूंजीपति व्यक्ति नियंत्रित करता है। 

इस व्यबस्था में व्यक्ति के व्यक्तिगत प्रतिभा को उच्च स्थान तथा आदर प्राप्त होता है, कोई भी व्यक्ति जितना इच्छा करे उतना धन दौलत इस व्यबस्था में रहकर कमा सकता है, लकिन हाँ कानून के दायरे में रहकर।

एहि है पूंजीवादी व्यबस्था का प्रार्थमिक अर्थ है। दोस्तों इसके कुछ चरित्रो के माध्यम से आपको इस व्यबस्था के बारे में जानने हेतु काफी आसानी होगी। तो फिर चलिए इसके मुख्य चरित्रो को जानने की कोसिस करते है।   

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पूंजीवादी व्यबस्था का मूल चरित्र (Punjiwadi Vyabstha Ka Mul Charitra)

1. व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार: - पूंजीवादी व्यबस्था में व्यक्ति को व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार प्राप्त होता है। यहाँ कोई भी व्यक्ति देश की कानून व्यबस्था के दायरे में रहकर जितना संपत्ति बनाना चाहे उतना संपत्ति बना सकता है। 


सरकार इसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं करता। इसका मूल उदहारण: - बिल गेट्स, मुकेश अम्बानी, मर्क ज़र्करबर्ग, जेफ़ बेज़ोस ये सारे धनी व्यक्ति है।


2. राष्ट्र की संपत्ति का अधिकार: - अगर आप समाजबादी व्यबस्था को अध्ययन करोगे तो आपको वहाँ देखने मिलेगा की वहाँ राष्ट्र की संपत्ति को सरकार दुवारा नियंत्रित किआ जाता है। 


लकिन पूंजीवाद में राष्ट्र की संपत्ति को बड़े बड़े पूजीपति व्यक्ति ही नियंत्रित करते है, सरकार नहीं। दोस्तों मई भी ये मानता हु की इस व्यबस्था में काफी सारे दोष है लकिन साथ ही ये भी बोलना पड़ेगा की पूंजीवाद के जरिए देश या समाज की आर्थिक प्रगति ज्यादा तेजी से होती है।

समाजवाद में समाज के सारे व्यक्तिओ को एक समान अधिकार तो प्राप्त होता है लकिन इस व्यबस्था में ज्यादातर लोग आलसी हो जाते है तथा देश की प्रगति की गति भी कमजोर हो जाती है।  


3. श्रेणी बिभाजन: - धन-संपत्ति के ऊपर निर्भर करके पूंजीवादी समाज में श्रेणी बिभाजन बहुत ही ज्यादा होता है। इसीलिए समाजदर्शनिक कार्ल मार्क्स ने कहा है की ऐसे समाजो में तीन मूल श्रेणीआ पाए जाते है।

इसमें प्रथम है Proletariat, दूसरा है Bourgeois और तीसरा है Petty-bourgeois. पूंजीवादी समाज में धनी-व्यक्ति और भी ज्यादा धनी होता जाता है और गरीब और भी ज्यादा गरीब होता जाता है।


4. उपभोग के लिए उद्पादन: - पूंजीवादी अर्थव्यबस्था में जितने भी सामग्री उद्पादन किए जाते है वो सारे के सारे केबल उपभोग और अर्थ आहरण के लिए ही किए जाते है। 

समाजबादी व्यबस्था में सामग्री और सेवा का उद्पादन राष्ट्र के कल्याण के लिए होता है लकिन पूंजीवाद का उद्देश्य इससे सम्पूर्ण अलग है।



5. तीब्र प्रतियोगिता: - इस व्यबस्था में सामग्री उद्पादनकारी पूँजीपतिओ के बिच पुरे बाजार को दखल करने के लिए तीब्र प्रतियोगिता होती है। 

बाजार दखल करने के इस प्रतियोगिता के कारण उद्पादनकारी अधिक से अधिक उन्नत मान का सामान उद्पादन करते है और इनको कम दामों में बेचने की कोसिस करते है। उदाहरण : - अमेज़न.कॉम, फ्लिपकार्ट. कॉम।   

एहि  वो कारण है जिसके वजह से साधारण उपभोक्ता इस व्यबस्था में रहकर उन्नत मान का जीबन यापन कर सकते है।


6. श्रम का बाजार : - ये इसका सबसे महत्वपूर्ण चरित्र है, क्योकि यहां मानव श्रम को बेचा और ख़रीदा जाता है। इस व्यबस्था में रहकर पूंजीपति मानव श्रम को खरीदते है और जो श्रमिक होते है वे अपने श्रम को धन के बदले में बेचते है।

इस श्रम बेचने और खरीदने के इस व्यबस्था को प्रकाशित करने हेतु, एक महान अर्थनीतिविद एक बार एक मंतव्य किआ था। उन्होंने कहा था की : - An Entrepreneur can convert a common persons 24 hour into his 24,00000 hours.


शायद इसी बात से आप समझ सुके होंगे की पूंजीवाद में श्रम की बिक्री और खरीदगी किस स्तर तक होती है।