Sunday, 9 December 2018

जाति व्यबस्था का मूल चरित्र (Jati vyabstha ka mul charitra)

जाति व्यबस्था का मूल चरित्र (Jati vyabstha ka mul charitra)

जाति व्यबस्था का मूल चरित्र

जाति व्यबस्था भारतबर्ष के समाज का एक अन्यतम चरित्र है। 

हिन्दू धर्म के वर्ण व्यबस्था से विवर्तित होके जनम लेने वाले इस प्रथा का कुछ अति महत्वपूर्ण चरित्र है जिसको हम आज इस लेख पर आलोचना करेंगे। 

तो चलिए वो सारे चरित्र क्या क्या है उनको जानने की कोसिस करते है। 


1. हिन्दू धर्म से सम्बंधित: -  सबसे पहले क्या आपको मालूम है की भारतवर्ष के जो जाति व्यबस्था है वो हिन्दू धर्म से जन्मा हुआ एक सामाजिक प्रथा है

महाभारत जैसे धर्म ग्रंथो में भी आपको इस प्रथा का परिचय अच्छे से देखने मिलेगाजो ये प्रमाणित करता है की जाति प्रथा इस देश का कोई नया सामाजिक नियम नहीं है बल्कि ये एक बहुत ही पुराणा नियम है, जो हज़ारो सालो से यहाँ चलता आ रहा है।  

ये आज भी भारत देश के समाज व्यबस्था का एक अति महत्वपूर्ण अंश है। 

हिन्दू धर्मग्रंथ महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने ये भी कहा था की जाति प्रथा जो उस समय के समाज को परिचालित कर रहा था, वो पुराणे समय के वर्ण व्यबस्था से जन्मा हुआ है। 

वर्ण व्यबस्था पूर्ण रूप कर्म आधारित था लेकिन ये विवर्तित होके बाद में जनम आधारित हो गया। 


2. जन्म से जुड़ा हुआ : - जाति व्यबस्था पूर्ण रूप से जन्म आधारित है। अर्थात एक व्यक्ति किसी जाति का अंतर्गत होता है उसके जन्म के जरिए। 

जन्म के अलावा कोई भी व्यक्ति किसी भी जाति का अंतर्गत नहीं हो सकता।

जैसे की 'शूद्र' जाति में जनम लेने वाले व्यक्ति कभी भी ब्राह्मण नहीं बन सकता और इसी तरह 'ब्राह्मण' व्यक्ति भी शूद्र नहीं बन सकता। 


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3. जाति प्रथा के अंदर बिभाजन : - हिन्दू धर्म में जितने भी लोग है उन  सभी को चार भागो में बिभाजित किआ गया है।

सबसे उचा जो जाति है वो है ब्राह्मण और उसके बाद है क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र।

शुद्र लोगो का सामाजिक स्थान सबसे निम्न माना जाता है। इसीलिए उच्च जाति के लोग इनको हमेशा ही निचे दबाके रखने की कोसिस करते है। 


4. विशेष कर्म : - प्रत्येक जाति के लोगो का खुद का अपना अपना कर्म निर्धारित जन्म से ही निर्धारित होता है।

जैसे की ब्राह्मण लोगो का काम है पूजा-अर्चना करना, क्षत्रिय लोगो का कार्य होता है यूद्ध और राज्य शासन करना, वैश्य लोगो का मूल कार्य होता है ब्यापार करना और शुद्र जाति के लोगो का काम होता है इन तीनो जाति के लोगो की सेवा करना।

अपने जनम निर्धारित कार्य को छोड़के अन्य कार्य करने को हिन्दू धर्म में अपराध माना जाता है।  

हालाकि आज के समय में वो सोच समाज से जा सुका है लेकिन यकीन मानिए एक समय में ये सारे सोच भारत के समाज व्यबस्था को नियंत्रित करता था।


5. वर्ण व्यबस्था से जन्मा हुआ : - जाति व्यबस्था का पांचवा चरित्र है की ये प्राचीन भारत के वर्ण व्यबस्था से जन्मा हुआ एक सामाजिक प्रथा है। 

प्राचीन भारतीय धर्म ग्रन्थ महाभारत में ये लिखा गया है की एक समय को भारतीय समाज में वर्ण व्यबस्था प्रचलित था।

ये वर्ण व्यबस्था जो था वो जनम पर नहीं बल्कि कर्म आधारित था। 

लेकिन समय बीतने की साथ साथ वर्ण व्यबस्था में कुछ अपबित्र धारणाये समाने लगे, जो बाद में जाके इस कर्म आधारित प्रथा को जन्म आधारित करने लगे।

अगर आपने 'बिस्वमित्र' के बारे में सुना है तो आपको पता होगा की वे एक क्षत्रिय व्यक्ति थे। 

लेकिन बाद में वे अपने कर्म के जरिए जाके क्षत्रिय से ब्राह्मण के स्तर तक उन्नित हुए।