सामाजिक अध्ययन क्या है?
मानब समाज में बिभिन्न समय पर बिभिन्न प्रकार कि परिघटनाए होती रहती है। और इन परिघटनाओं से बिभिन्न प्रकार कि सामाजिक व्यबस्थाऔ का भी जनम होता है।
समय अनुसार वही सामाजिक व्यवस्थाए समाज को परिचालित भी करती है।
दोस्तों जब कोई व्यक्ति अथवा समाजशास्त्राबिद उन व्यबस्थाऔ और घटनाओ को किसी विशेष पद्धिति की प्रयोग करने के माध्यम से अध्ययन करते है तथा उसकी सत्यता को जानने का प्रयास करते है, उसी को सामाजिक अध्ययन बोला जाता है।
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सामाजिक अध्ययन का महत्व
1. सामाजिक समस्या का समाधान: - सामाजिक समस्या दुनिआ की हर एक मानब समाज का विशेष चरित्र होता है। दुनिआ में ऐसा कोई भी समाज नहीं जहाँ समस्या नहीं है।
पूर्व से लेके पश्चिम तक और उत्तर से लेके दक्षिण तक हर जगह समस्याए ही समस्याए है।
इसीलिए सामाजिक अध्ययन एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिए दुनिआ की इन समस्याओ के ऊपर अध्ययन किआ जा सकता है तथा इनको समाधान करने के लिए हल निकाला जा सकता है।
2. घटनाओ का सत्य उद्घाटन:- ये इंसान की जन्मसिद्ध प्रबृत्ति ही है की इंसान हमेशा ही नए नए चीज़ो या घटनाओ को जानने के लिए आग्रही रहता है तथा उन घटनाओ के अंतराल में छिपे हुए रहस्य को उद्घाटन करने की कोसिस करता है।
सामाजिक अध्ययन एक ऐसा जरिआ है जिसके माध्यम से समाज में छिपे हुए बिभिन्न प्रकार के घटनाओ की रहस्य या सत्य को उद्घाटन किआ जा सकता है। घटनाओ के रहस्य उद्घाटन में ये मुख्य भूमिका पालन करता है।
3. प्रतिष्ठित सिद्धांतो की पुनः परीक्षा: -
समाज विज्ञानिओ ने बिभिन्न समय पर बिभिन्न प्रकार के सिद्धांत आगे रखा है। जैसे की कार्ल मार्क्स सिद्धांत, मैक्स वेबर का सिद्धांत इत्यादि इत्यादि।
सामाजिक अध्ययन के माध्यम से हम उन अध्ययनों की सत्यता को जान सकते है तथा पुनः प्रमाणित कर सकते है। ये दराचल प्रतिष्ठित सिद्धांत के सत्यता को जानने के लिए ही जरूरी होता है।
सामाजिक अध्ययन के माध्यम से हम उन अध्ययनों की सत्यता को जान सकते है तथा पुनः प्रमाणित कर सकते है। ये दराचल प्रतिष्ठित सिद्धांत के सत्यता को जानने के लिए ही जरूरी होता है।
सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र
1. मानब समाज:
- सामाजिक अध्ययन का मूल क्षेत्र है मानब समाज। मानब समाज को केंद्र करके ही ये पूरा अध्ययन चलता है। परिवार, विवाह, जाती, समूह, धर्म, व्यक्ति का आचरण, सामाजिक समस्या इत्यादि इसके परिधि के अंतर्गत विषय है।
2. अध्ययनकारी: - किसी भी सामाजिक परिघटना को अध्ययन करने के लिए अध्ययनकारी सबसे ज्यादा जरूरी होता है, इसके बिना कोई भी अध्ययन संभव नहीं हो सकता, इसलिए अध्ययनकारी भी इसके क्षेत्र का अन्यतम विषय है।
यहाँ अध्ययनकारी व्यक्ति की सोच, पद्धिति, मानसिक अवस्था को ज्यादा ध्यान दिआ जाता है।
3.सामाजिक घटना: - जैसे की गरीबी, हत्या, चोरी, डकइती, वेश्या बृत्ति, जनसंख्या बृद्धि, अंधबिस्वास, सांस्कृतिक चरित्र इत्यादि।
यहाँ अध्ययनकारी व्यक्ति की सोच, पद्धिति, मानसिक अवस्था को ज्यादा ध्यान दिआ जाता है।
3.सामाजिक घटना: - जैसे की गरीबी, हत्या, चोरी, डकइती, वेश्या बृत्ति, जनसंख्या बृद्धि, अंधबिस्वास, सांस्कृतिक चरित्र इत्यादि।
सामाजिक अध्ययन की विशेषता
1. सबसे पहले तो ये मानब समाज की एक अध्ययन प्रक्रिया है। जिसके जरिए मानब के दुवारा किए गए कार्य, घटना, घटना के कारण, समस्या और उसकी समाधान इत्यादि विषयो के ऊपर अध्ययन किआ जाता है।
2. ये हमेशा ही मानब समाज के कल्याण के लिए किआ जाता है। चाहे वो किसी समस्या की समाधान के माध्यम से हो या फिर किसी नए पद्धिति का प्रयोग करने के माध्यम से हो।
3. सामाजिक अध्ययन पद्धिति समय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। एक समय में प्रयोग किआ गया एक पद्धिति अन्य एक समय पर कार्य नहीं भी कर सकता है। इसलिए परिवर्तनशीलता इसका मुख्य धर्म है।
4. ये हमेशा ही किसी विशेष विषय के ऊपर निर्भर करके संपन्न होता है। जैसे की गरीबी, अपराध, शोषण, वेश्या बृत्ति इत्यादि इत्यादि।
सामाजिक अध्ययन की विशेषता
1. सबसे पहले तो ये मानब समाज की एक अध्ययन प्रक्रिया है। जिसके जरिए मानब के दुवारा किए गए कार्य, घटना, घटना के कारण, समस्या और उसकी समाधान इत्यादि विषयो के ऊपर अध्ययन किआ जाता है।
2. ये हमेशा ही मानब समाज के कल्याण के लिए किआ जाता है। चाहे वो किसी समस्या की समाधान के माध्यम से हो या फिर किसी नए पद्धिति का प्रयोग करने के माध्यम से हो।
3. सामाजिक अध्ययन पद्धिति समय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। एक समय में प्रयोग किआ गया एक पद्धिति अन्य एक समय पर कार्य नहीं भी कर सकता है। इसलिए परिवर्तनशीलता इसका मुख्य धर्म है।
4. ये हमेशा ही किसी विशेष विषय के ऊपर निर्भर करके संपन्न होता है। जैसे की गरीबी, अपराध, शोषण, वेश्या बृत्ति इत्यादि इत्यादि।