सामाजिक विज्ञान (Samajik Vigyan)
मानब समाज दिन व दिन जितना ज्यादा विकशित होता जा रहा है सामाजिक विज्ञान (Samajik Vigyan in Hindi) के अध्ययन परिधि भी उतना ही ज्यादा ब्यापक होता जा रहा है।
क्या आप जानते है की सामाजिक विज्ञान दराचल है क्या ?
क्या आप जानते है की सामाजिक विज्ञान दराचल है क्या ?
अगर आपको इस संकल्पना के ऊपर स्पष्ट धारणा नहीं है ये लेख आपको वो जानने में काफी मदद करेगी।
दोस्तों इस लेख में हम जानेंगे की ये क्या है ?,इसका मूल चरित्र कौन कौन सी है और ये किस तरह से प्राकृतिक विज्ञान से अलग है? इत्यादि इत्यादि।
दोस्तों इस लेख में हम जानेंगे की ये क्या है ?,इसका मूल चरित्र कौन कौन सी है और ये किस तरह से प्राकृतिक विज्ञान से अलग है? इत्यादि इत्यादि।
तो चलिए सबसे पहले ये क्या है उसी को जान लेते है।
Related Articles: -
सामाजिक विज्ञान क्या है ?
सामाजिक विज्ञान भी दराचल एक प्रकार का विज्ञान ही है। लेकिन जिस तरह प्राकृतिक विज्ञानं प्रकृति के बिभिन्न घटनाओ के ऊपर अध्ययन करता ये उसके बिपरीत केबल मानब समाज को ही अध्ययन करता है।
इसीलिए केवल मानव समाज ही इसके अध्ययन परिधि के अंतर्गत विषयबस्तु है।
समाज में हो रहे बिविन्न प्रकार की घटना या व्यबस्थाए जैसे की विवाह, परिवार, धर्म, जाती, समूह, सामाजिक समस्या, कल्याण इत्यादि विषय इसके दुवारा अध्ययन किआ जाता है।
इसीलिए केवल मानव समाज ही इसके अध्ययन परिधि के अंतर्गत विषयबस्तु है।
समाज में हो रहे बिविन्न प्रकार की घटना या व्यबस्थाए जैसे की विवाह, परिवार, धर्म, जाती, समूह, सामाजिक समस्या, कल्याण इत्यादि विषय इसके दुवारा अध्ययन किआ जाता है।
दोस्तों यही पर शायद आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा की इसको विज्ञान का दर्जा क्यों प्रदान किआ गया है ?
इसका मूल कारण है दराचल जिस तरह प्राकृतिक विज्ञान प्राकृतिक घटनाओ को अध्ययन करने के हेतु व्यवस्थित, विशिष्ट, पूर्वानुमान, आत्म-संशोधनमूलक पद्धिति अपनाता है उसी तरह सामाजिक विज्ञान भी समाज में हो रहे घटनाओ को अध्ययन करने हेतु इन्ही तरीको को अपनाता है।
प्राकृतिक विज्ञान के साथ काफी मिला जुला होने के कारण इसको भी काफी हद तक विज्ञान कहाँ जाता है।
प्राकृतिक विज्ञान के साथ काफी मिला जुला होने के कारण इसको भी काफी हद तक विज्ञान कहाँ जाता है।
हालाकि अभी तक इसको पूर्ण रूप से विज्ञानं का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है।
सामाजिक विज्ञान का मूल चरित्र
1. प्रत्यक्षकरण:- जिस तरह विज्ञान प्राकृतिक घटनाऔ को अध्ययन करते समय सबसे पहले उसका निरीक्षण करता है उसी तरह सामाजिक विज्ञान भी सामाजिक घटनाऔ को अध्ययन करते समय सबसे पहले उसका निरीक्षण करता है।
जैसे की दरिद्रता के ऊपर अध्ययन करने से पहले समाज विज्ञानी दरिद्र व्यक्ति, सरकार, समाज की मानसिकता, राष्ट्र व्यबस्था, जनरीति, लोकाचार इत्यादि विषयो को एक एक करके निरिक्षण करता है।
2. प्रणालीबद्धता: - सामाजिक विज्ञान हमेशा ही किसी विशेष पद्धिति के दुवारा अपने अध्ययन कार्य में आगे बढ़ता है।
ये पद्धिति पहले से निर्धारित तथा अच्छी तरीके से श्रृंखलित होती है।
उदाहरण के रूप में कोई अध्ययनकारी जब जनसंख्या बृद्धि के ऊपर अध्ययन करता है; तब सबसे पहले वे तथ्य संग्रह करता है और उन तथ्य को संग्रह करने से पहले वो जो जो तरीका अपनाता है वो सारे के सारे प्रणालीबद्ध होता है।
जैसे की धर्म के आधार पर तथ्य संग्रह, भाषा के आधार पर संग्रह, लिंग के आधार पर संग्रह, ये सब पूर्ब निर्धारित होते है। इसी करणवर्ष प्रणालीबद्धता भी इसका एक और मुख्य चरित्र है।
3. आत्म-संशोधनकेंड्रिक: - समाज की अध्ययन के लिए एक समय में व्यबहार किआ गया अध्ययन पद्धिति किसी दूसरे समय में कार्यकारी नहीं भी हो सकता है।
ये पद्धिति पहले से निर्धारित तथा अच्छी तरीके से श्रृंखलित होती है।
उदाहरण के रूप में कोई अध्ययनकारी जब जनसंख्या बृद्धि के ऊपर अध्ययन करता है; तब सबसे पहले वे तथ्य संग्रह करता है और उन तथ्य को संग्रह करने से पहले वो जो जो तरीका अपनाता है वो सारे के सारे प्रणालीबद्ध होता है।
जैसे की धर्म के आधार पर तथ्य संग्रह, भाषा के आधार पर संग्रह, लिंग के आधार पर संग्रह, ये सब पूर्ब निर्धारित होते है। इसी करणवर्ष प्रणालीबद्धता भी इसका एक और मुख्य चरित्र है।
3. आत्म-संशोधनकेंड्रिक: - समाज की अध्ययन के लिए एक समय में व्यबहार किआ गया अध्ययन पद्धिति किसी दूसरे समय में कार्यकारी नहीं भी हो सकता है।
इसीलिए सामाजिक विज्ञान की अध्ययन पद्धिति समय समय पर बदलता रहता है या बदलना पडता है।
4. सार्वजनीनता : - दोस्तों विज्ञानं जिस तरह सार्वजनीन है उसी तरह ये भी कुछ कुछ हद तक सार्वजनीन होता है।
उदाहरण के रूप में विवाह, परिवार, धर्म ये सभी सामाजिक संस्थाए विश्व के प्रत्येक मानव समाज में होते है और इसी तरह सामाजिक समस्याए भी प्रत्येक समाज की विशेषता होती है।
सामाजिक विज्ञान और प्राकृतिक विज्ञान के बिच का अन्तर
1. परिवर्तनशीलता के विपरीत अपरिवर्तनशीलता : - प्राकृतिक विज्ञान के दुवारा प्रतिष्ठित किआ गया सिद्धांत हमेशा ही अपरिवर्तित होता है।
अगर कोई सिद्धांत आज प्रमाण के दुवारा प्रतिष्ठित होता है तो वो सौ साल बाद भी वही प्रमाणित होगा, इसमें कोई भी बदलाव नहीं आ सकता।
लेकिन सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में ये सिद्धांत पूर्ण रूप से कार्यकारी नहीं हो सकता। आज प्रमाणित हुआ कोई सिद्धांत 100 साल या 10 साल बाद गलत भी साबित हो सकता है।
अगर कोई सिद्धांत आज प्रमाण के दुवारा प्रतिष्ठित होता है तो वो सौ साल बाद भी वही प्रमाणित होगा, इसमें कोई भी बदलाव नहीं आ सकता।
लेकिन सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में ये सिद्धांत पूर्ण रूप से कार्यकारी नहीं हो सकता। आज प्रमाणित हुआ कोई सिद्धांत 100 साल या 10 साल बाद गलत भी साबित हो सकता है।
2. सार्वभौमिकता के विपरीत अ-सार्वभौमिकता : - सार्वभौमिकता विज्ञान का प्रधान चरित्र है लेकिन इसमें वो चरित्र आपको देखने नहीं मिलेगा।
क्योकि व्यक्ति के मन, समाज की संस्कृति ये सब, जगह जगह पर अलग अलग होती है और इसीलिए इसका सिद्धांत भी जगह जगह पर अलग निकलके आती है।
क्योकि व्यक्ति के मन, समाज की संस्कृति ये सब, जगह जगह पर अलग अलग होती है और इसीलिए इसका सिद्धांत भी जगह जगह पर अलग निकलके आती है।
3. अनुसंधानकेंद्र के उपस्थिति के विपरीत अनुपस्थिति : - वैज्ञानिक परीक्षा के लिए विशेष अनुसंधान केंद्र होती है।
जिसमे विषयवस्तुओ को अध्ययन किआ जाता है लेकिन सामाजिक विज्ञान का कोई भी अध्ययन अनुसंधान केंद्र में नहीं होता। पूरा मानब समाज ही इसका अध्ययन केंद्र है।
जिसमे विषयवस्तुओ को अध्ययन किआ जाता है लेकिन सामाजिक विज्ञान का कोई भी अध्ययन अनुसंधान केंद्र में नहीं होता। पूरा मानब समाज ही इसका अध्ययन केंद्र है।