द्वंदतात्मक भौतिकताबाद की विशेषता (dvandaatmak bhautikavaad kee visheshata)
कार्ल मार्क्स दुवारा दिए गए द्वंदतात्मक भौतिकताबाद सिद्धांत के कोई सारे विशेषता है। उन विशेषताओ में से ये कुछ मुख्य रहे : -
1. सबसे पहले इस सिद्धांत के अनुसार भौतिक जगत ही पुरे समाज व्यबस्था के परिचालन का मुख्य केंद्र स्वोरुप है। भौतिक अवस्था को केंद्र करके ही प्रथम एक सामाजिक अवस्था प्रचलित रहता है और जब वो अवस्था एक समय पर समाज के सामान्य लोगो की वस्तुगत जरूरतो को पूरा करने में अशक्षम हो जाता है तब उसके विरुद्ध एक नया मानसिक अवस्था लोगो के मनमे विकाशित होता है।
इसी वस्तुकेन्द्रिक मानसिक अवस्था के कारण एक समय ऐसा आता जब समाज में पुराने अवस्था का पतन हो जाता है तथा समाज में नए अवस्था का जनम होता है।
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2. द्वंदतात्मक भौतिकताबाद कार्ल मार्क्स का एक नया मौलिक संकल्पना नहीं था। उनसे भी पहले विख्यात जर्मन दार्शनिक हेगेल ने इस संकल्पना के ऊपर ब्रिस्टिट अध्ययन किआ था। हालाकि हेगेल ने मार्क्स के जैसे इस सिद्धांत के ऊपर वस्तुजगत को प्राधान्य नहीं दिआ था, उन्होंने केबल व्यक्ति के भाव जगत को ही ज्यादा प्राधान्य दिआ था।
3. द्वंदतात्मक भौतिकताबाद एक स्थाई सामाजिक प्रक्रिया है। मानब समाज में निरंतर ये चलता ही रहता है और इसी के कारण समाज में परिवर्तन तथा प्रगति आता है।
4. द्वंदतात्मक भौतिकताबाद एक चक्रीय प्रक्रिया है। क्योकि एक समय में प्रतिष्ठित 'स्थापना' अन्य एक समय में जाकर 'संश्लेषण' होता है। और वो संश्लेषण फिरसे एक समय में जाकर स्थापना बनता है। मानब समाज में ये चक्रीय प्रक्रिया निरंतर चलता ही रहता है।
5. हाँ ये मानना पड़ेगा की द्वंदतात्मक भौतिकताबाद वस्तुजगत को केंद्र करके ही विकशित होता है लकिन इसके कारण व्यक्ति के मन मानसिकता, बुद्धि इत्यादि में भी बृहद परिवर्तन तथा विकाश आता है।