मैक्स वेबर के अधिकार सिद्धांत (Max Weber Authority in Hindi)
समाजशास्त्र के विकाश हेतु महान जर्मन दार्शनिक मैक्स वेबर ने अधिकार सिद्धांत को आगे रखा था। क्या आप पहले से इस लोकप्रिय समाजतात्त्विक सिद्धांत के साथ परिचित है ?
दोस्तों आज इस लेख में हम मैक्स वेबर की इस अधिकार सिद्धांत को ही आलोचना करेंगे। आशा करता हु की आपको काफी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।
दोस्तों आज इस लेख में हम मैक्स वेबर की इस अधिकार सिद्धांत को ही आलोचना करेंगे। आशा करता हु की आपको काफी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।
मैक्स वेबर के अनुसार अधिकार वो एक क्षमता होता है, जिसके जरिए समाज के कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को अपने इच्छा के अनुसार कार्य करवा सकता है।
और अगर कोई व्यक्ति उस क्षमता को अस्वीकार करता है तथा उसके विरुद्ध कोई कार्य करता तो ऐसे व्यक्ति को उस अधिकार के दुवारा कठोर दंड प्रदान किआ जा सकता है।
और अगर कोई व्यक्ति उस क्षमता को अस्वीकार करता है तथा उसके विरुद्ध कोई कार्य करता तो ऐसे व्यक्ति को उस अधिकार के दुवारा कठोर दंड प्रदान किआ जा सकता है।
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हालाकि समाज और देश अनुसार ये अधिकार की संकल्पना अलग अलग होता है। उदाहरण के रूप में एक एकनायक के दुवारा शासित देश में वहा शासक का क्षमता वो खुद ही निर्णय करता है, जैसे की उत्तरी कोरिया।
लकिन एक गणतांत्रिक राष्ट्र में शासक या कोई उच्चपद में स्थित व्यक्ति अपने क्षमता को अपने अनुसार निर्णय नहीं कर सकता। वहाँ कोई विशेष संबिधान होता है और उसके अनुसार ही शासक का क्षमता निर्णीत होता है। उदाहरण: - भारत।
मैक्स वेबर के अधिकार सिद्धांत के प्रकार (Types of Max Weber Authority in Hindi)
1. कानून का अधिकार: - इस अधिकार को किसी विशेष कानून या विधि प्रणयन के माध्यम से प्रयोग किआ जाता है।
उदहारण के रूप में: - न्यायालय के न्यायाधीश का जो क्षमता होता है, उस क्षमता को प्रयोग करके वे किसी दोषी को दंड प्रदान कर सकते है। न्यायाधीश के उस आदेश या राय को मानने के लिए सरकार प्रशासन सब बाध्य होते है।
उदहारण के रूप में: - न्यायालय के न्यायाधीश का जो क्षमता होता है, उस क्षमता को प्रयोग करके वे किसी दोषी को दंड प्रदान कर सकते है। न्यायाधीश के उस आदेश या राय को मानने के लिए सरकार प्रशासन सब बाध्य होते है।
भारतीय के संबिधान के दुवारा देश के न्यायाधीश को ये क्षमता प्रदान किआ हुआ होने के कारण ही वे इस क्षमता को प्रयोग कर पाते है।
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2. विशेष गुणसंपन्न अधिकार: - विशेष गुणसंपन्न अधिकार को प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति को कानून या समाज के निर्धारित नियम दुवारा क्षमता प्राप्त करना आवश्यक नहीं होता।
इस अधिकार को व्यक्ति अपने व्यक्तिव तथा चरित्र के माध्यम से ही प्राप्त कर सकते है। इसीलिए इसको संमोहक व्यक्तिव भी कहा जाता है। व्यक्ति का चरित्र इसका मुख्य उपादान है।
इस अधिकार को व्यक्ति अपने व्यक्तिव तथा चरित्र के माध्यम से ही प्राप्त कर सकते है। इसीलिए इसको संमोहक व्यक्तिव भी कहा जाता है। व्यक्ति का चरित्र इसका मुख्य उपादान है।
उदाहरण के रूप में महात्मा गाँधी, अडोल्फ हिटलर, अब्राहम लिंक्लॉन इत्यादि व्यक्ति इस प्रकार के अधिकार या क्षमता के अधिकारी व्यक्ति थे।
आधुनिक समाज में व्यक्ति के व्यबहार, आचरण, इत्यादि के दुवारा वे अपना पूरा जीबन बिता सकता है।
आधुनिक समाज में व्यक्ति के व्यबहार, आचरण, इत्यादि के दुवारा वे अपना पूरा जीबन बिता सकता है।
3. परंपरा या सामाजिक अधिकार: - हम सभी लोग किसी ना किसी समाज में वास करते है, उस समाज के संस्कृति और नियमो को श्रद्धा तथा पालन करते है। लकिन इन नियमो को पालन करने के बहुत सारे कारणो में से एक मुख्य कारण है भय।
जो हम सभी को ये नियम पालन करने के लिए हमारे अज्ञात ही हमको बाध्य करवाते है।
उदाहरण के रूप: - भारत देश में एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के इंसान के साथ विवाह संपन्न नहीं कर सकता अर्थात सामाजिक कानून इसकी अनुमति प्रदान नहीं करता।
इसके विपरीत जाकर कोई व्यक्ति अगर ये कार्य करता है तो वो सामाजिक कानून के अनुसार दण्डित होगा।
उदाहरण के रूप: - भारत देश में एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के इंसान के साथ विवाह संपन्न नहीं कर सकता अर्थात सामाजिक कानून इसकी अनुमति प्रदान नहीं करता।
इसके विपरीत जाकर कोई व्यक्ति अगर ये कार्य करता है तो वो सामाजिक कानून के अनुसार दण्डित होगा।
समाज के लोगो की ये जो क्षमता है; इसी को साधारण भाषा में परंपरा या सामाजिक अधिकार बोला जाता है।
हालाकि आधुनिकीकरण के प्रभाव से ये सारे नियम आज बदल रहे है तथा दूसरे जाती, धर्म के लोगो के साथ भी विवाह संपन्न करना संभव हो रहा है।
हालाकि आधुनिकीकरण के प्रभाव से ये सारे नियम आज बदल रहे है तथा दूसरे जाती, धर्म के लोगो के साथ भी विवाह संपन्न करना संभव हो रहा है।