Thursday, 31 January 2019

सामाजिक क्रिया के प्रकार

सामाजिक क्रिया के प्रकार (Types of Social Action in Hindi)


इससे पहले की लेख में हमने मैक्स वेबर की सामाजिक क्रिया क्या है और इसकी विशेषताए क्या क्या होती है उसको अध्ययन किआ था। 

दोस्तों इस लेख में हम जानेंगे की उन्होंने सामाजिक क्रिया को किन किन प्रकारो में विभाजित किआ है? और इन प्रकारो का अर्थ क्या क्या है ? 

तो चलिए बिना देर किए इस महान समाज दार्शनिक दुवारा किए गए इन प्रकारो को अच्छे से जानने की कोसिस करते है।

सामाजिक क्रिया के प्रकार, Types of Social Action in Hindi

1. परंपरा केंड्रिक सामाजिक क्रिया: - इस प्रकार के अनुसार कोई भी सामाजिक क्रिया मानव समाज में परंपरा के अनुसार ही चलता आता है। 

मानव समाज का परंपरा तथा बिभिन्न प्रकार की जनरीति और लोकाचार ही इसका मूल चलन शक्ति होती है। 

उदाहरण के रूप में: - परंपरागत भारतीय समाज में परंपरा अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने माता-पिता की सेवा करना, उनका आदर-सम्मान करना बेहद ही जरूरी है। 

ये इस देश के समाज व्यबस्था का एक अति महत्वपूर्ण अंश तथा परंपरा है। 

इसके कारण देश के सामान्य व्यक्तिया अपने माता-पिता या अपने बड़ो को इन सारे परम्पराओ के माध्यम से सम्मान तथा आदर करते आये है।

भारतीय समाज में परंपरागत रूप से अपने माता-पिता के साथ संतानो का ये जो सम्बन्ध होता है; इसको भी हम इस समाज के क्षेत्र में परंपरागत सामाजिक क्रिया बोल सकते है।

इसका दूसरा अति सुन्दर उदाहरण है भारत के विवाहित हिन्दू नारीओ दुवारा अपने मांग में सिंदूर लेना। ये भी वेबर दुवारा दिए गए परंपरा केंड्रिक सामाजिक क्रिया का अन्यतम उदाहरण है। 

इसको एक बार आप खुद अच्छे से सोचके देखिये, यकीन मानिए आपको बहुत ही अच्छा लगेगा।   

Related Articles: -


2. कृत्रिम सामाजिक क्रिया: - कृत्रिम सामाजिक क्रिया उसको कहा जाता है जहाँ सामाजिक क्रिया में अंश लेने वाले व्यक्तिया किसी विशेष निर्धारित नीति नियम के माध्यम से सम्मिलित होते है। 

उदाहरण के रूप में: - भारत देश में बिभिन्न समय पर अनुस्थित होने वाले संसद सम्मेलन। ये सारे किसी विशेष निर्धारित नीति-नियम के माध्यम से ही संभव हो पाता है।

3. स्वार्थ केंड्रिक सामाजिक क्रिया: - इस प्रकार के सामाजिक क्रिया में कर्ता हमेशा ही अपने लाभ-नुकसान के बारे में सोचता है।  

सराचर राजनैतिक नेताओ दुवारा किआ गया कार्य इसका मुख्य उदाहरण है, उसी तरह व्यापारिक कार्य प्रणाली भी इसी के माध्यम से होती है। 

आवेग-अनुभूतिओं की तात्पर्य को कम करकर कर्ता यहाँ लाभ केंड्रिक युक्तिपूर्ण आचरण किआ जाता है। दोस्तों एहि पर आपको बता देना चाहता ही की ये लाभ केन्द्रिकता कुछ भी हो सकता है, केवल अर्थ या धन ही नहीं।   

4. अनुभूतिक सामाजिक क्रिया: - इस प्रकार में व्यक्ति की आवेग-अनुभूतिया ही मुख्य विषय होती है। ये आवेग-अनुभूतिया ही इस प्रक्रिया को सफलता प्रदान करती है। इसमें व्यक्ति की युक्ति कम प्रयोग होती है। 

दोस्तों क्या आप समझ पा रहे है की यही सारे मानसिक-सामाजिक उपादान मानव समाज को परिचालित करता आया है और आगे भी करता रहेगा।  

उदाहरण: - प्रेम, क्रोध, हिंसा ये सभी अनुभूतिक सामाजिक क्रिया का अंश है। चलिए हामारे रोज-मर्रा के जीवन में हम कैसे इसका उपयोग करते रहते है आपको कुछ उदाहरण दे देता हूँ : -

  • जब कोई माता-पिता अपने संतानो के प्रति प्रेम दर्शाते है। 
  • जब कोई प्रेमिक अपने प्रेमिका को प्रेम करते है। 
  • जब खुसी के मौके पर हम आनंद-उल्लाश करते है और गाना गाते है, ये सभी इसके अंतर्गत है। 
मानव समाज में बाकि तीनो से ज्यादा इसी भाग का व्यबहार सबसे ज्यादा होती है।